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से भिन्न निरंश तत्व है। परमाणु पुद्गल अविभाज्य, अच्छेद्य, अभेद्य एवं अदाह्य है।' ऐसा कोई उपचार या उपाधि नहीं, जिससे उसका उपचार किया जा सके।'
परमाणु का वही आदि, वही मध्य और वही अंत है। कहा भी है"अन्तादि अन्तमज्मं, अंतन्तं णेव इंदिए गेसं जं दव्वं अविभागी तं परमाणुं विजाणीहि।"
ये इन्द्रियग्राह्य नहीं होते। परमाणु मात्र कारण ही नहीं, कार्य भी है क्योंकि वह स्कंधों के भेद पूर्वक उत्पन्न होता है। परमाणु में स्नेह आदि गुण उत्पन्न और विनष्ट होते रहते हैं। अतः कथंचित् वह अनित्य भी है। भगवती सूत्र में गौतम स्वामी ने प्रश्न किया-क्या यह एक प्रदेशी परमाणु कांपता है? परमात्मा ने स्याद्वाद के अन्तर्गत इसका समाधान स्याद्वाद की भाषा में दियावह कांपता भी है और नहीं भी।'
अगला प्रश्न पूछा-क्या परमाणु तलवार की धार या उस्तरे की धार पर अवगाहन करके रह सकता है? भगवान ने कहा-वह अवगाहन करके रह सकता है।'
अब हमें यह जिज्ञासा हो सकती है कि उपरोक्त लक्षणों से युक्त परमाणु पुद्गल कितने समय तक रहता है। भगवान ने फरमाया कि परमाणु पुद्गल जघन्य एक समय तक और उत्कृष्ट असंख्य काल तक रहता है।'
अगर वास्तव में देखा जाय तो मूल पदार्थ तो परमाणु ही है। यह परमाणु स्वतंत्र है। यह न तो तोड़ा जा सकता है, न देखा जा सकता है। इसकी लंबाई, चौड़ाई, मोटाई नहीं है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि परमाणु निराकार है क्योंकि निराकार तो गुणधारण नहीं कर सकता। आकारवान् पदार्थ ही गुणों को धारण करते हैं और गुणों के समूह को धारण करने के कारण ही द्रव्य माना जाता है।
अब अगर यह प्रश्न हो कि वह आकार कैसा है तो इसका जवाब यही दिया जा सकता है कि यह परमाणु स्वयं ही अपना आकार है। यही उसकी 1. भगवती 5.7.3(2) 2. भगवती 5.7 10(1) एवं त.सू. 5.25 3. त. रा. वा. 4.5.25 पृष्ठ 491 से उधृत। 4. भगवती 5.7 3(11) 5. भगवती 5.7.3 (1) 6. भगवती 5.7 14(1)
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