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(1) पुद्गल गलन और पूरण स्वभाव वाला होता है।
( 2 )
भेद और संघात के अनुसार जिसमें पूरण गलन क्रिया अन्तर्भूत होती है। ( 3 ) जीव जिन्हें शरीर, आहार विषय और इन्द्रिय उपकरणादि के रूप में निगलता है या ग्रहण करता है वे पुद्गल है।
जैन दर्शन में छहद्रव्यों की प्ररूपणा है। उन षड्द्रव्यों में पाँच द्रव्य तो अरुपी और अमूर्त है, परंतु पुद्गल ही एक ऐसा द्रव्य है जो मूर्तिक / रुपी है । '
यह पुद्गल पाँचवर्ण, पाँचरस, दो गंध, आठस्पर्श रुपी, अजीव शाश्वत, अवस्थित तथा लोक का एक अंशभूत द्रव्य है। 2
पुद्गल के भेदः - पुद्गल दो प्रकार के होते हैं। परमाणु पुद्गल और नो परमाणु पुद्गल' (स्कध ) ।
परमाणु के लक्षण—स्कंध का अंतिम भाग अविभागी, एक शाश्वत मूर्तरूप से उत्पन्न होने वाला और अशब्द है । '
भगवती सूत्र में भी परमाणु की व्याख्या इस प्रकार से बतायी है। एक वर्ण, एक रस, एक गंध और दो स्पर्श वाला परमाणु पुद्गल कहा गया है। एक वर्ण वाला या तो लाल, पीला, काला, नीला या सफेद होगा। एक गंध में या तो सुगंध होती है या दुर्गन्ध। यदि एक रस हो तो या तो तीखा या कड़वा या कसैला या खट्टा या मीठा । दो स्पर्श में शीत- स्निग्ध या शीत- रुक्ष या उष्ण-स्निग्ध या उष्ण-रुक्ष होगा. ( अर्थात् स्पर्श दो होंगे और वे विरोधी होंगे। ) s
महावीर ने हजारों वर्षों पूर्व ही परमाणु के संबंध में तलस्पर्शी समाधान दे दिये थे। आज वैज्ञानिक अणु के अन्वेषण करने में जुटे हुए हैं, किन्तु अणु के संबंध में जिस सूक्ष्मता से महावीर ने विवेचन किया, आज के वैज्ञानिक वहाँ तक नहीं पहुँच पाये है। आज के वैज्ञानिक जिसे अणु कहते हैं, महावीर उसे स्कंध कहते हैं। महावीर की दृष्टि में परमाणु इन्द्रियातीत है। वह स्कंध
1. " रुपिणः पुद्गलाः " त. सू. 5.4
2. ठाणांग 5.174
3. ठाणांग 2.228
4. पंचस्तिकाय. 77.
5. भगवती 20.5.1
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