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छाया, तप एवं प्रकाश ये पुद्गल की पर्याय है।' द्रव्य का परिणमन पर्याय हैं। इन उपरोक्त पर्यायों में पुद्गल ही परिणत होता है।
शब्दः - जो अर्थों को कहता है वह शब्द है। शब्द का प्रयोग 'ध्वनि' अर्थ में हुआ है। शब्द दो प्रकार के होते हैं - ( क ) भाषात्मक ( ख ) अभाषात्मक । भाषात्मक शब्द ( अ ) अक्षर और (आ) अनक्षर के भेद से दो प्रकार का है। अक्षरकृत शब्दों से शास्त्र की अभिव्यक्ति होती है। यह आर्य और म्लेच्छ आदि जाति के मनुष्यों के व्यवहार का माध्यम बनती है। अनक्षरात्मक शब्द इन्द्रिय आदि के जीवों के होते हैं। अनक्षरात्मक शब्द के भी ( 1 ) प्रायोगिक ( 2 ) स्वाभाविक दो भेद होते है।
अप्रायोगिक शब्द भी चार प्रकार का होता है
तत- पुष्कर, भेरी, तबला, ढोलक आदि में चमड़े के तनाव से शब्द जो होते हैं वे तत है।
विततः - वीणा, सुघोष, आदि से जो शब्द होता है वह वितत है।
घनः - ताल, घंटा आदि घन वस्तुओं के अभिघात से जो शब्द उत्पन्न होता है वह घन है।
सौषिर:- बांसुरी, शंख आदि से निकलने वाला शब्द सौषिर है। 2
( आ ) स्वाभाविकः - मेघ आदि के निमित्त से जो शब्द उत्पन्न होते हैं वे स्वाभाविक या वैस्रसिक है। "
जैन दर्शन ही एक ऐसा दर्शन हैं जिसने शब्दादि को पुद्गल की पर्याय के रूप में स्वीकार किया है। वैशेषिक आदि शब्द को आकाश का गुण मानते हैं, परंतु जैन शब्द को पुद्गल की पर्याय विशेष मानकर उसे नित्यानित्य मानते हैं। शब्द पुद्गल द्रव्य की दृष्टि से नित्य और श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा सुनने योग्य पर्यायसामान्य की दृष्टि से कालान्तर स्थायी है और प्रतिक्षण की पर्याय की अपेक्षा क्षणिक हैं। 1
1. त. सू. 5.24
2. त. रा .वा. 5.24.2/485 एवं ठाणांग 2.212-217
3. त. रा. वा. 5.24 572
4. त. रा. वा. 5.24.5 887
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