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प्रकार उसके आकार का भी विवेचन किया।
अधोलोक का संस्थान किस प्रकार का है? गौतम स्वामी के इस प्रश्न पर भगवान महावीर ने कहा- अधोलोक क्षेत्रफल का संस्थान तिपाई के समान है। तिर्यग् लोक क्षेत्रलोक का आकार झालर के आकार का है। अधोलोक के क्षेत्रलोक का आकार मृदंग के समान है । '
लोक का संस्थान सकोरे के आकार का है। वह नीचे से चौड़ा, ऊपर से मृदंग जैसा है। प्रशमरति में उमास्वाति ने भी लोक की आकृति इसी प्रकार से बतायी है। अधोलोक का आकार सकोरे के समान ( ऊपर संक्षिप्त नीचे विशाल ), तिर्यक्लोक आकार थाली के जैसा है एवं ऊर्ध्वलोक का आकार खड़े रखे गये सकोरे के ऊपर उलटे रखे गये सकोरे के जैसा है। 2
अलोक का संस्थान पोले गोले के समान है। " भगवती में व्याख्याकार ने लोक का प्रमाण इस प्रकार से बताया है, "सुमेरु पर्वत के नीचे अष्टप्रदेशी रुचक है। उसके निचले प्रतर के नीचे नौ सो योजन तक तिर्यग्लोक है। उसके आगे अधः स्थित होने से अधोलोक हैं जो सात रज्जु से कुछ अधिक है तथा रुचक प्रदेश की अपेक्षा नीचे और ऊपर नौ सो-नौ सो योजन तिरछा होने से तिर्यग्लोक है। तिर्यग्लोक के ऊपर कुछ कम सात रज्जु प्रमाण ऊर्ध्वभागवर्ती होने से ऊर्ध्वलोक कहलाता है। ऊर्ध्व और अधोदिशा में कुल ऊँचाई चौदह रज्जु है।*
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जैन दर्शन की तरह विज्ञान जगत ने भी आकाश को स्वीकार किया है। डा. हेनसा के अनुसारः
"These four elements ( Space, Matter, Time and Medium of motion) are all seperate in mind. We can not imagine that the one of them could depend on another or converted into another."
आकाश, पुद्गल, काल और गति का माध्यम (धर्म) ये चारों तत्व हमारे मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न है। हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते कि ये 1. भगवती 11.10.1. एवं वही 7.1.5
2. प्रशमरति प्रकरण 2.11
3. भगवती 11.10.11
4. भगवती 11.10.11 पृ. 53
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