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इन पंचमहाभूतों को न किसी ने बनाया है और न बनवाया है; न तो ये कृत है, न कृत्रिम और न ही किसी से अपनी उत्पत्ति की अपेक्षा रखते हैं। ये पंचमहाभूत आदि-अंत रहित हैं, स्वतंत्र एवं शाश्वत हैं।'
पाँच महाभूत ही जीव हैं। ये ही अस्तिकाय हैं। ये ही जीवलोक हैं। संसार का कारण ये ही हैं। तृण का कंपन तक इनके कारण ही होता है।'
इन पृथ्वी आदि पाँच महाभूतों के शरीर रूप में परिणत होने पर इन्हीं भूतों से अभिन्नज्ञानस्वरूप चैतन्य उत्पन्न होता है। जैसे गुड़, महआ आदि मद्य की सामग्री के संयोग से मदशक्ति उत्पन्न हो जाती है, वैसे ही पाँच भूतों के संयोग से शरीर में चैतन्य शक्ति उत्पन्न हो जाती है। जैसे जल में बुलबुले उत्पन्न होते हैं और विलीन हो जाते हैं,वैसे ही पंचमहाभूतों से चैतन्य उत्पन्न होता है और उन्हीं में विलीन हो जाता है।'
शरीर से अतिरिक्त अन्य कोई जीव नहीं है, जो लोक परलोक जाकर शुभ अशुभ का फल भोगे। जो कुछ है शरीर है और वह भी बिजली की तरह चंचल है, इसलिए खाओ, पीओ और मस्ती से रहो।'
सांख्य दर्शन में आत्मा - सांख्य दर्शन में पुरुष और प्रकृति दो मुख्य तत्व हैं। वैसे तो सांख्य दर्शन 25 तत्व मानता है। इनमें प्रकृति और उसके 23 विकारों एवं पुरुष का समावेश है।
सांख्य के अनुसार यह चैतन्य शरीर नहीं है और न तत्वों से उत्पन्न पदार्थ है। यह उनके अंदर अलग-अलग विद्यमान भी नहीं है, अतः उन सबमें एक साथ नहीं हो सकता।' यह इन्द्रियों से भिन्न है। इंद्रियाँ दर्शन के साधन अवश्य हैं, दृष्टा नहीं। पुरुष बुद्धि से भी भिन्न है, क्योंकि बुद्धि अचेतन है।
हमारे अनुभवों की एकता आत्मा के कारण है। विशुद्ध आत्मा ही पुरुष है जो प्रकृति से भिन्न है।' पुरुष का प्रकाशमय स्वरूप कभी परिवर्तित नहीं 1. वही 665. 2. वही 657. 3. षड्दर्शन समुच्चय 84., प्रमेयकमलमार्तण्ड पृ. 115. 4. षडदर्शन समुच्चय टीका 82.564. 5. सांख्यप्रवचनसूत्र 5.129. 6. वही 2.29. 7. सा.प्र.सू. 6.1.2.
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