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संसारी जीवों का वर्गीकरण (वस और स्थावर की अपेक्षा):-काय दो प्रकार की है- त्रसकाय और स्थावर काय।' जिनके त्रस नाम कर्म का उदय हैं, वे त्रस एवं जिनके स्थावर नाम कर्म का उदय हैं। वे स्थावर कहलाते है। जो चल फिर सके वे त्रस एवं स्थिर रहे वे स्थावर है।
भगवान् महावीर अपूर्व और अलौकिक पुरुष थे। वे सर्वज्ञ, सर्वदर्शी थे। उन्होंने जीवों का जिस प्रकार से सूक्ष्म विवेचन किया है, आज तक ऐसा विश्लेषण और वर्गीकरण किसी भी संप्रदाय के लिये संभव नहीं बना। जहाँ कल्पना भी नहीं की जा सकती, वहाँ उन्होंने जीवों का स्थान बताकर उनकी संपूर्ण आहार आदि क्रियाओं को विश्लेषित किया।
आचारांग के प्रथम अध्ययन में स्थावर जीवों का सूक्ष्म चिंतन उपलब्ध होता है। स्थावर पाँच हैं- पृथ्वी, अप्, तेउ, वायु और वनस्पति।' _अनेकों प्रकार से आतुर मानव पृथ्वीकाय के जीवों को संतप्त करता है उन जीवों की हिंसा करना, कराना व उसका अनुमोदन करना जीव के लिये घातक होता है।
जिस प्रकार का वेदना बोध जन्म से अंध, बधिर, मूक, पंगु और मनुष्य को होता है, उसी प्रकार का अव्यक्त वेदना बोध पृथ्वीकाय के जीवों को भी होता है।
इसी प्रकार से अप्काय' का, तेउकाय का', वाउकाय' और वनस्पति' का विवेचन है।
स्थावर के आहार स्थिति आदि की चर्चाः-पृथ्वीकाय, अप्काय तेउकाय, वायुकाय और वनस्पति काय आदि की जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त की एवं उत्कृष्ट
1. ठाणांग 2.164. एवं उत्तराध्ययन 36.68. त.सू. 2.12. 2. स.सि. 2.12.284. 3. जीव विचार 4. आचारांग 1.2.15.17. 5. वही 1.2.28 6. वही 1.3.39-53. 7. वहीं 1.4.73.84. 8. वहीं 1.7.152-168. 9. वही. 1.5.101-112.
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