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अनुकूलन Adoptation अपने को परिस्थिति के अनुसार वनस्पति भी अन्य प्राणियों की तरह ढाल लेती है। रेगिस्तानी पौधों की पत्तियाँ सजल स्थानों के पौधों की अपेक्षा छोटी होती हैं ताकि उनसे भाप बनकर पानी कम उड़े।
विसर्जन excreation श्वसन की तरह इनमें विसर्जन क्रिया भी पत्तों द्वारा सम्पन्न होती है।
मृत्य Death जीवित पौधे प्रारंभ में तेजी से वृद्धि करते हैं, परंतु बाद में यह गति धीमी हो जाती है और अन्त में वे पौधे मुरझा जाते हैं, जो उनका मरण कहलाता है।
वनस्पति के भेदः-जैन दर्शन के अनुसार वनस्पति के दो भेद हैं। सूक्ष्म वनस्पतिकाय और बादर वनस्पतिकाय।'
प्रत्येक वनस्पति अर्थात् एक शरीराश्रित एक ही आत्मा, जैसे सरसों के अनेकों दानों को गुड़ मिश्रित कर लड्डु बनाते हैं। लड्डु एक पिण्ड होने पर भी दानों का अस्तित्व अलग-अलग होता है, वैसे ही बाहर से एक दिखने पर भी जो जीव अपने शरीर का भिन्न अस्तित्व रखें, उसे प्रत्येक वनस्पतिकाय कहते हैं।
साधारण वनस्पति अर्थात निगोद के जीव। वे इतने सूक्ष्म हैं कि चक्षु से अग्राह्य हैं। इनके एक दो तीन संख्यात व असंख्यात जीवों का पिण्ड नहीं दिखता अपितु अनंतजीवों का पिण्ड ही देखा जा सकता है।'
जैनागमों मे निरुपित सूक्ष्म स्थावर जीवों की तुलना बैक्टेरिया से की जा सकती है। बैक्टेरिया के बारे में वैज्ञानिकों का कथन हैं कि ये इतने छोटे हैं कि सूक्ष्म यंत्रों से भी इनका पता लगाना कठिन है। संसार में ऐसी कोई जगह नहीं, जहाँ ये न हों। बहुत से कीटाणु तो प्रत्येक तापक्रम पर रह सकते हैं। ये बैक्टीरिया अनेक प्रकार की आकृति वाले है। इनमें से सूक्ष्म गोलाकार आकृति के कीटाणु जिन्हें कोकाई कहते हैं तथा चक्करदार आकृति के कीटाणु 1. पत्रवणा सूत्र 1.36 2. पनवणा 1.56 3. "सुहमा आणागिज्जा.... णिगोअजीवाणताण" पन्नवणा 1. गा. 103 पृ. 63. 4. कृषिशास्त्र पृ. 125
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