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हैं; नित्य परमाणुओं के विभिन्न संयोगों से बनते हैं और वियोग से विनष्ट होते हैं। भौतिक पदार्थों के अवयवों का विभाग भी किया जाता है और इन अवयवों को पुन: अन्य अवयवों में विभक्त किया जा सकता है, इस अनवस्था से बचने के लिये अंतिम अवयव को अविभाज्य और निरवयव मानना होगा, और ऐसा अतीन्द्रिय नित्य अविभाज्य भौतिकद्रव्य परमाणु है।'
परमाणु चार प्रकार के हैं। पार्थिव, जलीय, तैजस और वायवीय। आकाश एक और नित्य है।
प्रशस्तपाद ने अपने भाष्य में इन परमाणुओं से जगदुत्पत्ति का सुंदर विवेचन किया है। अणुपरिमाण विशिष्ट परमाणुओं से द्यणुक की उत्पत्ति होती है। व्यणुक कार्य होने से अनित्य है यद्यपि वह भी अणुपरमाणुक होता है। तीन द्वयणुकों से जिस त्रसरेणु की उत्पत्ति होती है वह महत्परिमाणवाला होता है। यही इन्द्रियगोचर होता है। परमाणु की व्याख्या इस प्रकार उपलब्ध होती हैं-छत के छेद से सूर्य की किरणों में जो छोटे कण नजर आते हैं वे त्रसरेणु हैं और उस त्रसरेणु का छठा भाग परमाणु है।'
__ परमाणु शांत और निस्पंद रहते हैं फिर उनमें स्पंद कैसे होता है? वैशेषिक इसका कारण धर्माधर्मरूप अदृष्ट को बताते हैं। जैसे सुई की अयस्कांतमणि में गति', वृक्षों में रस का नीचे से ऊपर की ओर बढ़ना होता है, वैसे ही मन तथा परमाणुओं की पहली क्रिया अदृष्ट की सहकारिता से ईश्वर की इच्छा से परमाणुओं में स्पंदन, और फिर उससे सृष्टि क्रिया मानी गयी है।'
चार्वक के मत में द्रव्य एवं सृष्टि:-भारतीय दर्शन में चार्वक दर्शन का उल्लेख नास्तिक दर्शन में होता है। वह इस सृष्टि की रचना को किसी व्यक्ति विशेष की उपलब्धि न मानकर इसे पृथ्वी, जल, तेज और वायु के ही तत्वचतुष्टय के द्वारा उत्पन्न बताता है। जिस प्रकार महुआ आदि मादक सामग्री संयोग 1. न्यायभाष्य 4.2.17-25.7. प्रशस्तपादभाष्य पृ. 19-22 2. प्रशस्तपादभाष्य पृ. 19-22 3. जालान्तरगते भानो. यत् सूक्ष्म दृश्यते रजः। तस्य षष्ठतमो भागः परमाणु सः उच्यते" उद्धृत आप्तमीमांसा
पृष्ठ 20 से. 4. "मणिगमनसूच्यभिसर्पणमित्यदृष्टकारणम्" वै.सू. 5.1.15 5. "वृक्षाभिसर्पणमित्यदृष्टकारितम्" वै.सू. 5.2.7 6. प्रशस्त. भा. पृ. 20 7. पृथ्वी जल तथा.... चतुष्टयम्" षड्दर्शन. 43 "शरीरेन्द्रियविषय संज्ञेभ्य..." प्रमेयकमल. पृ. 115
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