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निर्णयात्मक ज्ञान के हेतुओं द्वारा आत्मा की सत्ता का अनुमान किया है।' गौतम ऋषि अनुमान के अतिरिक्त शास्त्रीय प्रमाण भी देते हैं।
आत्मा का मानस प्रत्यक्ष होता है या नहीं, न्याय दर्शन में इसके विषय में मतभेद है। न्यायसूत्र में आत्मा के अनुमान की चर्चा है, प्रत्यक्ष की नहीं। न्याय सूत्र के भाष्यकार वात्स्यायन ने आत्मा को योगी प्रत्यक्ष का विषय कहा है, लौकिक प्रत्यक्ष का नहीं।
वैशेषिक दर्शन के प्राचीन साहित्य के अनुसार भी इसी भाष्यकार वात्स्यायन द्वारा प्रतिपादित आत्मा के योगी प्रत्यक्ष का विषय होने के पक्ष का समर्थन होता है, परंतु उद्योतकर, वाचस्पति मिश्र' आदि ने ज्ञान आदि विशेष गुणों के साथ आत्मा का मानस प्रत्यक्ष 'अहम्' पदार्थ के रूप में माना है।
बौद्ध दर्शन का अनात्मवादः-उपनिषदों ने आत्मा और आत्मा से संबंधित विद्या को प्रमुख तत्व मानकर उसी की प्राप्ति को जीवन का लक्ष्य बना दिया था। बौद्ध दर्शन ने उस तेजी से पनपती आत्मवाद की प्रवृत्ति को रोकने के लिए अनात्मवाद का सिद्धांत दिया। बुद्ध ने रूप, वेदना, संज्ञा, संस्कार, विज्ञान और इन्द्रियों पर एवं इन्द्रियों के विषय पर क्रमशः विचार किया और उन सभी को अनित्य और अनात्म घोषित कर दिया।
वे अपने श्रोताओं को भी प्रश्नोत्तर की शैली में युक्तिपूर्वक विश्वास करवा देते थे कि सब कुछ अनात्म है और आत्मा जैसी कोई वस्तु नहीं है। ___बुद्ध के अनुसार जन्म, मरण, कर्म, विपाक, बंध और मोक्ष सब कुछ है, परंतु इनका स्थायी आधार नहीं है। ये समस्त अवस्थाएं अपने पूर्ववर्ती कारणों से उत्पन्न होती रहती हैं और एक नवीन कार्य को उत्पन्न करके नष्ट होती रहती हैं। इस प्रकार संसार चक्र चलता रहता है। उत्तर-वर्ती अवस्था पूर्वबर्ती अवस्था से न सर्वथा भिन्न है और न अभिन्न, अतः अव्याकृत है।' 1. न्यायसूत्र 3.1.10 2. भारतीय दर्शन:-डॉ. राधाकृष्णन् भाग 2 पृ. 145 3. न्यायभाष्य 1.1.10 4. न्यायभाय 1.1.3. 5. भारतीय दर्शन: डॉ. एन.के. देवराज पृ. 300. 6. न्यायवा. पृ. 341. . 7. ता.टी. 501. 8. संयुत्तनिकाय 12.70.32-37. 9. संयुत्तनिकाय 12.17.24, मिलिन्दप्रश्न 2.25.33
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