Book Title: Dravyanuyoga Part 2
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj & Others
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ सम्मान्य सहयोगी सदस्य श्री विरदीचन्द जी कोठारी, किशनगढ़ श्रीमती रतनदेवी विरदीचन्द जी कोठारी, किशनगढ़ आप बहुत ही धार्मिक व भावनाशील दम्पती हैं। कोठारी स्टोन्स प्रा. लि., किशनगढ़ के डाइरेक्टर हैं। आपका मद्रास व बैंगलोर में भी अच्छा व्यवसाय है। श्री पारसमल जी, नेमीचन्द जी, नरेन्द्रकुमार जी, सूर्यप्रकाश जी आदि सुपुत्र भी बहुत ही भावनाशील हैं। आप मूलतः अरांई के निवासी हैं। महासती जी श्री पानकंवर जी के प्रति आपके माताजी की विशेष श्रद्धा-भक्ति थी। आपके भाई गुलाबचंद जी व मोहनसिंह जी धार्मिक श्रद्धालु थे। सन् १९९४ में महासती जी श्री उमरावकंवर जी के चातुर्मास कराने में आपका मुख्य योगदान रहा। उपाध्यायप्रवर श्री कन्हैयालाल जी म. 'कमल' के प्रति अनन्य श्रद्धा है। आपने भी ट्रस्ट को विशेष योगदान दिया है। श्री मदनलाल जी कोठारी, जोधपुर आप बहुत ही उदार एवं धर्म श्रद्धालु श्रावक थे। आपने अपने पिताजी श्री गजराज जी सा. एवं माताजी अणचोबाई की स्मृति में आचार्य जयमल स्मृति भवन में व्याख्यान हॉल में विशेष योगदान दिया। जीवदया, स्वधर्मी सहायता आदि कार्यों में आपकी विशेष रुचि थी। समतायोग आपकी धर्मपत्नी श्रीमती बिदामीबाई एवं सुपुत्र श्री मनसुखचंद जी, ज्ञानचन्द जी, सुमेरमल जी, केवलचन्द जी एवं जेठमल जी तथा सुपुत्री लीलाबाई बोहरा भी उसी प्रकार उनके पद चिन्हों पर चलकर धर्म की ओर अग्रसर हैं। आपको श्री तेजराज जी सा. भंडारी की विशेष प्रेरणा मिलती रहती है।आपके बम्बई व जोधपुर में व्यवसाय हैं। उपाध्याय श्री कन्हैयालाल जी म. 'कमल' एवं परम विदुषी महासती जी श्री उमरावकंवर जी 'अर्चना' आदि के प्रति विशेष श्रद्धा-भक्ति थी व उसी प्रकार परिवार के सदस्यों की सेवा-भावना है। कोठारी जी की स्मृति में ट्रस्ट को विशेष योगदान दिया है। श्रीमती चन्द्रादेवी बंब, टोंक (राज.) आपका जन्म आसोज बदी १२, सन् १९३३ दिल्ली में हुआ। सन् १९४५ में राजस्थान के प्रतिष्ठित परिवार के श्री धन्नालाल जी बंब के सुपुत्र श्री गंभीरमल जी के साथ पाणिग्रहण हुआ। आपके दो सुपुत्र श्री अजीतकुमार एवं श्री अशोककुमार हैं। आप अनुयोग प्रवर्त्तक पं. रत्न मुनि श्री कन्हैयालाल जी म. 'कमल' एवं महासती श्री पानकंवर जी तथा रत्नकंवर जी से विशेष प्रभावित हुई हैं। श्री विनय मुनि जी 'वागीश' के जीवन निर्माण में एवं धर्म की ओर अग्रसर करने में आप प्रमुख रही हैं। आप स्वयं के दीक्षा लेने के उग्र भाव थे परन्तु स्वास्थ्य अनुकूल न होने के कारण न ले सके। आपका स्वभाव बहुत ही विनम्र है। आपने अनुयोग ट्रस्ट में विशेष योगदान दिया है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 806