Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 12
________________ वही देवता है। जीवन किसी बाँस की पोंगरी की तरह है। अगर जीने की कला आ जाए तो यही बाँस की पोंगरी संगीत की स्वर-लहरियों को जन्म देने वाली बाँसुरी बन जाएगी, अन्यथा यही बाँस की पोंगरी आपसी स्वार्थों के चलते केवल लड़ने-लड़ाने के लिए बाँस के टुकड़े का काम करेगी। मनुष्य तो चलता-फिरता मंदिर है। जब मनुष्य ही एक मंदिर है तो इसमें रहने वाला देवता व्यर्थ कैसे हो सकता है। मनुष्य का शरीर भले ही माटी का हो, पर इसमें रहने वाला देवता दीये में जलती ज्योत की तरह चिन्मय है। हर मनुष्य परम सत्ता से सम्पन्न है। वह शान्ति, प्रेम और ज्ञान का सागर है। आनन्द उसका मूल स्वभाव है और मुक्ति उसका अधिकार । अपने आपको भुला दिये जाने के कारण ही उसकी सारी विशेषताएँ विस्मृत हो गई हैं। इस विस्मृति ने ही मनुष्य को दुःखी, स्वार्थी और विकृत बनाया है। जीवन के प्रति सकारात्मक रुख अपनाकर हम जीवन को प्रभु का प्रसाद और वरदान बना सकते हैं। हो सकता है कि हमारे जीवन में अनेक तरह की छोटी-मोटी समस्याएँ हों। समस्याएँ जो भी हों, हम उनका समाधान तलाश सकते हैं। जो व्यक्ति अपनी समस्या का समाधान निकालने की कोशिश ही नहीं करता, सच्चाई तो यह है कि ऐसी स्थिति में वह ख़ुद ही एक समस्या है। धर्म हमारे जीवन का सबसे सुन्दर समाधान है। धर्म का अर्थ है : धारण करना । जब हम धर्म को धारण करते हैं, तो धर्म हमें धारण कर लेता है। जन्म से कोई धार्मिक नहीं होता। धर्म को जीवन में धारण करने से ही व्यक्ति धार्मिक हुआ करता है। गुरु ने अपने शिष्यों और छात्रों को पाठ दिया - सत्यं वद, धर्मं चर, 11 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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