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में ध्यानस्थ हों। यहाँ ध्यान धरते हुए हमारा मन सहज शांत, निर्मल और निर्विकल्प हो चुका है। ऐसी स्थिति में हमें ब्रह्माण्ड से विश्व शक्ति प्राप्त होगी जिससे हमारी आध्यात्मिक शक्ति बढ़ेगी। हम स्वस्थ, सच्चिदानंद और निर्वाण की स्थिति को आत्मसात करेंगे।
अंतिम एक कार्य और करें कि प्रतिदिन दो घण्टे का समय ऐसा अवश्य चुनें, उस दौरान जो कुछ भी घटित हो, उसके बारे में कोई प्रतिक्रिया न करें। हम इस अभ्यास को धीरे-धीरे और बढ़ा सकते हैं। एक घण्टे को दो घण्टे में, दो को चार घण्टे में । आप पाएँगे कि धीरेधीरे यही जागरूकता आपके पूरे दिन-सप्ताह-महीने-वर्ष तक विस्तार लेती जा रही है। क्रिया-प्रतिक्रिया के द्वन्द्व से बचने से जहाँ हम उत्तेजना, क्रोध, तनाव और मानसिक खिंचाव से बचेंगे, वहीं शांति, सरलता, समदर्शिता के जीवनदायी तत्त्व अनायास आत्मसात् हो जाएँगे।
असीम शांति में ही असीम मुक्ति समाई है। शुद्धि और सामर्थ्य के पंखों के सहारे ही मुक्ति के आकाश में उड़ान भरना संभव है। आत्मस्मृति की भावदशा के साथ हम अनन्त मुक्ति के पथिक हों। जन्म और मृत्यु दोनों से उपरत होकर बस जिएँ और सहज मुक्त हो जाएँ।
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