Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 35
________________ परमात्मा : कहाँ है, कैसा है ? RANDOMARRIAGHORAN rasannaHADURRIANSIGHTINAMITRAMERAMANANDHeatuwariOSSIONPORNamaanadaNING arilesaneKEHRADURaepsakse 'परमात्मा' शब्द का उच्चारण करने मात्र से हृदय उल्लसित हो जाता है। मन की पाशविक वृत्तियों पर अंकुश लग जाता है। प्राणिमात्र के प्रति प्रेम और आत्म-भाव उमड़ आता है। परमात्मा अस्तित्व की सर्वोपरि सत्ता है। अस्तित्व और परमात्मा के बीच एक पुलक भरा सम्बन्ध है। परमात्मा किसी दर्शन-शास्त्र की अवधारणा नहीं, वरन् उसकी आभा और उसका वीतराग रास तो चारों ओर है, सर्वत्र है। परमात्मा मेरे भीतर भी है और आपके भीतर भी। प्रेम और प्रणाम का भाव अपने प्रति भी हो और औरों के प्रति भी। औरों को प्रेम दें और अपने आपको कष्ट, यह कौन-सी भक्ति हुई? अस्तित्व में ऐसा कोई अंश नहीं है जिसमें परमात्मा की सम्भावना से इंकार किया जा सके। हम उसे केवल अपनी ही आँखों में झाँक 34/ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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