Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 69
________________ करते तोते को देखकर ऐसा लगता है कि यह शरीर भी तो आखिर एक पिंजरे जैसा ही है। 'आत्मा' के नाम से पहचानी जाने वाली सत्ता इस पिंजरे में रहने वाले प्राण-पखेरू है। जीवन न तो अकेला शरीर है और न ही मात्र आत्मा। जीवन दोनों का संयोग है - शरीर और आत्मा की मिली-जुली सरकार है। शरीर यदि मंदिर है तो आत्मा मंदिर में रहने वाली देवता। शरीर भौतिक पदार्थों का मिश्रण और रासायनिक विकास है। आत्मा चैतन्य-शक्ति है, भौतिक पदार्थों के मिश्रण को प्राणवन्त करने वाली ऊर्जा है। शरीर में आत्मा का केन्द्र अन्तर-मस्तिष्क है।आत्मप्रदेशों का सर्वाधिक घनत्व मस्तिष्क में और मस्तिष्क के इर्द-गिर्द रहता है। इस घनत्व को हम एक तरैया की तरह समझें। यह शिव मंदिर में बनी जलेड़ी की तरह है। जलेड़ी की नाल पृष्ठ मस्तिष्क की ओर है और उससे प्रवाहित होने वाली संवेदनाएँ रीढ़ की ओर, हृदय और नाभि की ओर जाती हैं। किसी चीज़ का स्पर्श होते ही संवेदना होती है और यह संवेदना मनोमस्तिष्क और शरीर के विभिन्न केन्द्रों को प्रभावित और आन्दोलित करती है। हमारे शारीरिक और आन्तरिक जीवन का यह एक सहज विज्ञान है। हम अपने जीवन का अंतरंग समझें। मनुष्य दो प्रकार की शक्तियों का स्वामी है जिनमें एक शरीरगत है और दूसरी चेतनागत। शरीरगत शक्ति स्थूल है और इसका केन्द्र नाभि तथा उसके नीचे है। शरीर का ऊर्जा-कुण्ड यहीं निर्मित है। नये शरीरों का निर्माण इसी स्थूल शक्ति से होता है । यह शक्ति शरीर का बीज है। चेतनागत ऊर्जा शरीर के सबसे ऊपरी भाग में स्थित और क्रियान्वित रहती है। अग्र मस्तिष्क में आत्म-चेतना के सर्वाधिक 68 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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