Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 67
________________ प्रति करना चाहते हैं । दूसरों के साथ उस बरताव को करने से सदा परहेज रखेंगे जो हमारे अपने लिए कष्टप्रद या अमंगलकारी हो । कार्य वही किया जाना चाहिए जो स्व पर प्रकाशक हो, स्वयं के लिए भी कल्याणकारी हो । हम कुछ मूलभूत बातों पर ध्यान दें - 1. जीवित और मृत दोनों को देखकर मनन करें कि दोनों में क्या अन्तर है। वह वस्तु क्या है जिसके साथ रहने पर 'जीवन' के चिन्ह प्रकट होते हैं और अलग होने पर 'निर्जीव' के । 2. जन्म, रोग, बुढ़ापा, मृत्यु के मर्म को समझें और पड़तालें कि हर परिवर्तन के बावज़ूद वह कौन है जो फिर भी अपरिवर्तित रहता है । 3. देह के सुखों में ही शान्ति का साम्राज्य छिपा है तो फिर देह मरती क्यों है? क्या देह के आयुष्य जितना ही जीवन है ? 4. वह कौन है जो हमारे जन्म-मृत्यु का आधार है, हमारे हर कार्य का प्रेरक है तथा सुखद- दुःखद हर स्थिति का अनुभव करता है ? 5. हम जहाँ यह सोचें कि मैं कौन हूँ, वहीं यह भी विचार करें कि वर्तमान में मेरी चेतना कहाँ है? मैं मोह-मूर्च्छा के किस तिलिस्म में उलझा हूँ । हम अपनी मनीषा में इन जिज्ञासाओं को उतरने दें और धैर्यपूर्वक तलाशें इनके समाधान । ये समाधान ही देंगे हमें जीवन की गहराई, जीवन के परम सत्य की ऊँचाई । 66 | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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