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और विस्तार के लिए है, स्थिति आत्म- लीनता और परमात्म-स्मृति के लिए है। सिर पर आया सफेद बाल हमें अपने बुढ़ापे और मृत्यु के इशारे करता है । मृत्यु आए, उससे पहले निर्वाण हो जाए, तो इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा !
एक युवा सौदागर माल से भरी अपनी गाड़ियों को नदी के किनारे खड़ी करके स्नान करने लगा। स्नान करते हुए वह विचार कर रहा था कि इन गाड़ियों का माल बेचूँगा उससे मुझे दुगुना लाभ होगा। उससे फिर माल खरीदूँगा, उससे फिर मुझे चौगुना लाभ होगा। इस तरह मेरे पास समृद्धि बढ़ती जाएगी। मैं एक राजकुमारी से विवाह करूँगा । उसी समय नदी के दूसरे छोर पर बैठे एक त्रिकालदर्शी संत युवक के विचारों को पढ़ते हैं। वे अपने शिष्य से कहते हैं- ज़रा उस युवक को सावधान करो, वह भविष्य के इन्द्रधनुष रच रहा है। जबकि मात्र सात दिन बाद उसकी मृत्यु हो जाने वाली है 1
युवक अपनी मृत्यु के समाचार से मूर्च्छित हो जाता है। संत उससे कहते हैं - विचलित मत होओ, मृत्यु केवल सपनों की होती है, सत्य की नहीं। जीवन को धन्य करने के लिए सात दिन पर्याप्त हैं। युवक साधनाशील हो गया। मृत्यु सातवें दिन आई, पर वह छठे दिन ही मुक्त हो गया ।
सौभाग्य! मृत्यु से पहले निर्वाण हो गया । यदि हम गति और स्थिति को सदा अपना सकें तो और अच्छा ! उम्र का कोई भरोसा नहीं है। पचास की इंतज़ारी कौन करे ? हर रोज़ गति होनी चाहिए और हर रोज़ स्थिति भी । गति हो सम्यक् आजीविका के लिए, स्थिति हो आत्म-शांति और आत्म- प्रमुदितता के लिए। हमें अपनी आत्मशांति के लिए इतना पुख्ता बंदोबस्त कर लेना चाहिए कि हमारे मरने
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