Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 92
________________ के बाद हमारी आत्म-शांति के लिए किसी और को पूजा-पाठ करवाने की ज़रूरत न पड़े। आत्म-शांति, आत्म-शुद्धि और आत्म- मुक्ति अध्यात्म के तीन लक्ष्य हैं, तीन परिणाम हैं। आत्म-शांति आपका निर्णय है, आत्मशुद्धि आपका प्रयास और पुरुषार्थ है तथा आत्म- मुक्ति शांति और शुद्धि का मंगल परिणाम है। I आत्म-शांति चाहिए तो शांत रहिये। जो शांति चाहते हैं उन्हें शांत रहने की आदत डालनी होगी। हमें अपने दिमाग में सदा शांति का चैनल चलाना चाहिए। आखिर हम जीवन में जिस चीज़ को महत्त्व देंगे हमारे जीवन में वही चीज़ तो चरितार्थ होगी। हम व्यर्थ के ऊलजुलूल विचारों में न उलझें । चिंता को चिता के समान समझें और तनाव को आत्मा का बोझ । क्रोध और प्रतिक्रियाओं के तनाव से बचें। यदि हम चिंता और क्रोध के बार-बार प्रभाव में आते जाएंगे तो हमारे मन में निरंतर आर्त-ध्यान और रौद्र-ध्यान चलता रहेगा। ये दोनों ही अशुभ ध्यान हैं, हमारे मन में कलेश - संक्लेश पैदा करने वाले हैं । भीतर की शांति और शुद्धि के लिए चिंता और क्रोध से बचना, उस पर अंकुश रखना व्यक्ति की पहली आत्म-विजय है। आपका विवेकपूर्ण निर्णय आपके लिए शांति का द्वार खोलेगा । हम आत्म-शुद्धि पर सर्वाधिक बल दें । आत्म-शुद्धि के तीन चरण हैं - दर्शन-शुद्धि, विचार-शुद्धि और आचार-शुद्धि । दर्शन, विचार और आचार जीवन के ये तीन आधार-स्तम्भ हैं । इनकी शुद्धि जीवन की शुद्धि है । दर्शन-शुद्धि का संबंध है अन्तरदृष्टि से, विचार-शुद्धि का संबंध है अन्तरमन से और आचार - शुद्धि का संबंध है व्यवहार और क्रिया | 91 www.jainelibrary.org Jain Education International - For Personal & Private Use Only

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