Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 88
________________ आत्म-शुद्धि के तीन चरण मनुष्य की समस्त उज्ज्वल सम्भावनाएँ जीवन से जुड़ी हैं। जिसका जीवन के प्रति सम्मान और अहोभाव है, वह हर पल, हर घड़ी अपने-आप में परमात्म-भाव को जीता है, परमात्मा के प्रसाद का अमृतपान करता है। जीवन का सम्मान और छोटे-बड़े हर प्राणी में प्रभु की मूरत स्वीकार करना, जहाँ प्रेम और अहिंसा का स्वस्थ आचरण है, वहीं जीवन और जगत् को माधुर्य और आनन्द से सराबोर कर लेना है। मनुष्य की आत्म-निर्मलता के लिए वेश अथवा स्थान का परिवर्तन उतना महत्त्व नहीं रखता जितना कि मन का परिवर्तन महत्त्व रखता है। कोरे कपड़ों को रंग लेने से क्या होगा अगर अन्तरमन अछूता रह जाए। हम जीवन को संसार और संन्यास में न बाँटें। हर संसारी संन्यासी नहीं हो सकता। संत तो अरिहंत का प्रथम रूप है। भले ही हम संत न हो सकें, पर शांत तो हो ही सकते हैं। साधु-मुनि 87 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jaihelibrary.org

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