Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 70
________________ प्रदेश रहते हैं, किन्तु मध्य मस्तिष्क में इसकी ऊर्जा का स्पष्ट अनुभव होता है। आम आदमी में सत्तर प्रतिशत आत्म-प्रदेश तो शान्त-सुषुप्त स्थिति में रहते हैं। तीस प्रतिशत जो भाग सक्रिय रहता है, उसमें बीस प्रतिशत मध्य और पृष्ठ मस्तिष्क में है, जबकि शेष दस प्रतिशत पूरे शरीर में व्याप्त रहता है। जब मनुष्य के आयुष्य-कर्म क्षीण हो जाते हैं तो ये आत्म-प्रदेश शरीर को केंचुली की तरह छोड़ देते हैं। उन्हें बाहर निकलने के लिए शरीर की त्वचा का एक छिद्र भी काफी है। ___ अग्र मस्तिष्क मनुष्य का ज्योति-केन्द्र है। मानवीय चेतना का यह मूल केन्द्र होने के कारण यही दर्शन-केन्द्र कहलाता है और यही तीसरी आँख यानि शिवनेत्र/प्रज्ञानेत्र है। जीवन को सारी आज्ञाएँ यहीं से प्राप्त होती हैं, इसीलिए योग ने इसे 'आज्ञा-चक्र' नाम दिया है। मैं इसे ज्योति-केन्द्र या चैतन्य-केन्द्र कहना पसन्द करूँगा, क्योंकि इस उपमा की गहराई में सारी उपमाएँ समाविष्ट हो जाती हैं। यह वास्तव में आध्यात्मिक ज्ञान-शक्ति का केन्द्र है। हमारे जीवन का एक और जो महत्त्वपूर्ण केन्द्र है वह है हमारा अन्तरहृदय । हृदय से जीवन-संचार की व्यवस्था होती है। यह नाभि और मस्तिष्क के बीच का सेतु है। आत्म-चेतना में वही व्यक्ति जी सकता है जो नाभि के इर्द-गिर्द फैले जलाशय से कमल की तरह ऊपर उठ चुका है। नाभि के नीचे जीना ऊर्जा का निवास है, नाभि से ऊपर हृदय में जीना ऊर्जा का ऊर्ध्वारोहण है। हृदय में जीना या हार्दिक होना सदा आनन्द में विहार करना है। हमारे अन्तरहृदय में स्वर्गलोक है, देवत्व का निवास है। व्यक्ति के निजी परमात्म-स्वरूप का बीजांकुरण यहीं होता है। हृदय वास्तव में मनुष्य का मानसरोवर है। यहीं खिलता है जीवन की प्राण-ऊर्जा का कमल। 169 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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