Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 36
________________ सकते हैं, ऐसा नहीं है । यदि अन्तर- दृष्टि में उसकी रोशनी पैदा हो जाए तो हर ठौर वही झलकता हुआ नज़र आएगा। कभी प्रकृति की गोद में जाकर बैठें तो पता चले कि वह हर फूल, हर डाल पर है। झरनों से लेकर पहाड़ों तक, समुद्र से लेकर आसमान तक, फूलों से लेकर चाँद-सितारों तक वही तो विविध रंगों में मुस्कुराता है, लहराता है। जब सूरज-चाँद को देखते हैं तो लगता है प्रभु ने स्वयं ने दुनिया की रोशनी के लिए दो दीप जला रखे हैं। चिड़ियों की चहचहाट, कबूतरों की गुटर-गूं, भौंरों की गुंजन और नदियों का कलरव सुनते हैं तो लगता है जैसे प्रभु हमसे संवाद कर रहे हों, अठखेलियाँ खेल रहे हों । दृष्टि हो तो प्रभु सार्वभौम है, सब जगह है। वह तो सर्वव्यापी है। यह हमारी अल्प बुद्धि का परिणाम है कि जो सर्वव्यापक है हम उसे काबा - कर्बला, काशी- मथुरा, पालिताना - पंढरपुर में ही ढूंढते फिरते हैं । वह शब्द और नाम से ऊपर है फिर भी हम उसे प्रार्थना के सीमित शब्दों में बाँधते रहते हैं । वह सब कुछ जानता है फिर भी हम उसे अपनी इच्छाएँ और मंशाएँ बताते रहते हैं और उन्हें पूरी करने के लिए बार-बार आग्रह करते रहते हैं । या मेरी समझ से प्रभु से केवल प्रेम करें। कोई प्रार्थना है तो कहें और मुक्त हो जाएँ। रोज़-रोज़ मिन्नतें न करते रहें । वह भूल-भुलैया नहीं है। उससे तो केवल अपनी अर्जी लगाएँ और बाकी सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दें। उसे स्थान विशेष में न ढूँढें । वह या तो सर्वत्र है, कहीं नहीं है। परमात्मा की उपस्थिति का अहसास तभी होता है, हमें अपना अहसास हो । जैसे ही हमें अपना अहसास होता है, उसे अपनी बाँहों में मौजूद पाते हैं। मैंने उसकी कोई प्रतिमा नहीं बनायी, पर जो भी प्रतिमाएँ हैं, उन सबमें उसको देख रहा हूँ। फूलों से जब हम 35 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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