Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 45
________________ नहीं देता, लेकिन आत्मिक पवित्रता और आध्यात्मिक विकास के लिए हमें परमात्मा से बेहिसाब मदद मिल सकती है। हवा का रूप दिखाई न देने का मतलब यह नहीं कि हवा नहीं है। इन पेड़ों से निकलती प्राण-वायु (ऑक्सीजन) दिखाई नहीं देती है, पर उसका अस्तित्व तो है ही । दिखाई देने से ही किसी तत्त्व की सिद्धि नहीं होती। - परमात्मा अनुभव - दशा है, अन्तरदशा है, पुलक दशा है। वह आँखों के भीतर-की- आँखों से ही अनुभूत और उपलब्ध किया जाता है। परमात्मा मनुष्यात्मा की परम पवित्र और सम्पूर्ण मुक्त दशा का पर्याय है । उसका निवास हमारे हृदय की श्रद्धा में है । हम अपनी आत्मा से परमात्मा की दिव्यता का आह्वान करें। हम अपने मन को मारे नहीं, बल्कि पवित्र प्रेम और भक्ति से श्रृंगारित करें । अपने सोच-विचार - बरताव में सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के मूल्यों को साकार करें । आत्मा की धन्यता ही व्यक्ति को धन्य बनाएगी। वही परमात्म-स्वरूप का सान्निध्य प्रदान करेगी। यही सूत्र काफी है - अस्तित्व के साथ जीने के लिए, परमात्मा के साथ पुलकने के लिए। आइये, हम इस भाव - दशा के साथ परम सत्ता की ओर उन्मुख और गतिशील हों - 44 | सबसे प्रेम करो, सबकी सेवा करो, सबसे मिलो - जुलो, सबमें प्रभु के दर्शन करो। । Jain Education International सभी ठौर प्रभु का मंदिर है, और घड़ी सब पूजा की है ॥ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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