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पथ के अनुयायी बन जायेंगे।
निम्न बिन्दुओं पर और ध्यान दें -
1. हम मन नहीं, मन के साक्षी हों। मन के मुताबिक न करें। बुद्धि जैसा कहती है, वैसा करने की आदत डालें।
2. काम, क्रोध, झूठ, दोष चित्त में रहते हैं। चित्त की शुद्धि के लिए द्वेष करने वाले के प्रति प्रेम बढ़ाएँ, क्रोध करने वाले से क्षमा माँग लें, जहाँ वासना जाती है, वहाँ भगवान को खड़ा करें और अपने गुणों को बढ़ाएँ। ___3. अन्तरमन के भीतर की शान्ति, भीतर की स्वच्छता और भीतर हर हाल में आनन्द बरकरार रखें। सच्चिदानंद आत्मा का स्वभाव है, अपने इस स्वभाव को हर हाल में जिएँ। ___4. कर्म और उसके संस्कारों से मुक्त होने के लिए राग-द्वेष के नये अनुबंध न हों, इसके प्रति सजगता रखें और पुराने अनुबंधों के उदय होने पर ज्ञान और विवेक का उपयोग करें।
5. ध्यान में उतरें और व्यक्तिगत चेतना में परमात्म-चेतना का अनुभव करें। आत्मा की गहराई में उतरकर ही पूर्वजन्म का बोध पाया जाता है, पुनर्जन्म की कारा काटी जाती है और पूर्णजन्म की अमृत अवस्था को उपलब्ध किया जा सकता है।
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