Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 56
________________ पापी की नहीं। अपने भल-बुरे कर्मों के कारण ही व्यक्ति भला-बुरा कहलाता है। हम अपने कर्मों के प्रति सावधान हों, यह ज़रूरी है । यदि कोई ग़लत राह पर चलने का प्रयास करे तो यथासम्भव हम उसे सुधरने की प्रेरणा दें। उसका भव सुधारें, उसके भाव सुधारें, उसकी राह सुधारें । संसार-चक्र में धर्म-चक्र का प्रवर्तन करें । 'पूर्णजन्म' के लिए पूर्ण पवित्रता चाहिए। चाहे कोई कितना भी क्यों न गिरा हो, वह जब भी अपने-आपको सुधारना और सम्हालना चाहे, घुप्प अंधकार के बावजूद रोशनी की पहल कर सकते हैं, भीतर के देवता को दीपदान कर सकता है, अर्घ्य चढ़ा सकता है | चेतना के शिखर पर साक्षी की बैठक ही जन्म-जन्मान्तर से मुक्त होने की विधि है, एक स्वच्छ-सम्यक् अभियान है । हमने बंधना चाहा तो आज हम बँधे हुए हैं। हम अगर मुक्त होना चाहें तो मुक्त हो सकते हैं । हमारे बंधन और मुक्ति के हम स्वयं ही कारण हैं। संसार में यों तो लगता है कि स्त्री, संतान अथवा संपत्ति बंधन के कारण हैं। हो सकता है ये बंधन के कारण हों। पर वास्तव में बंधन के कारण तभी हैं जब हम इनसे बँधना चाहें । क्रोध करने के कारण ही कोई व्यक्ति दुर्वासा बनता है। मन में दुर्वासना के बीज होने के कारण ही कोई वाल्मीकि किसी मेनका से स्खलित होता है । कमज़ोरियाँ कितनी भी क्यों न हों हम जिस दिन मुक्त होना चाहेंगे मुक्ति के लिए हमारे क़दम बढ़ जायेंगे। हम महावीर और बुद्ध से प्रेरणा लें, धन-वैभव और भोग का प्राचुर्य होने के बावज़ूद उनके भीतर मुक्ति की अभिलाषा जग गई, सो वे मुक्ति पथ के मुक्ति दूत बन गये। जिस दिन हम भी मुक्ति के आकाश के निमंत्रण को समझ जायेंगे, हमें स्वार्थी संसार की समझ आ जाएगी, हमारे क़दम मुक्ति - Jain Education International For Personal & Private Use Only 55 www.jainelibrary.org

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