Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 47
________________ अपरिवर्तनीय उपस्थिति में, ही अपनी तुम बैठे-बैठे। अजस्र गति संचार किया करते हो, अगिन रूप निर्माण किया करते हो। तुमसे ही तो है सब श्वास चल रहे, शांति, शांति, वह शांति धरा पर उतरे ॥ हे प्रभु! तुम्हारी कृपा से सर्वत्र शांति और आनन्द हो। हमारा हृदय प्रेम में बना रहे, हमारे हाथ परोपकार में रहें, हमारी दृष्टि सदा सकारात्मक हो, इन तीन चीज़ों की सौगात हमें अवश्य देना। हमसे सदा वही कर्म हों जो कर्म तुम हमसे करवाना चाहते हो। 000 46 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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