Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 24
________________ स्वर्ग-नरक की सही समझ स्वर्ग और नरक - मानवीय जीवन के दो विपरीत ध्रुव हैं। स्वर्ग भी मनुष्य का अपना परिणाम है और नरक भी मनुष्य का अपना परिणाम है। मनुष्य का सत्य और कल्याण-पथ से गिरना ही नरक है और अमृत-पथ पर निरन्तर दृढ़ रहना ही स्वर्ग है। मानव मात्र का कल्याण चाहने वाले हर प्रबुद्ध व्यक्ति की यह प्रेरणा रहती है कि हर मनुष्य अमृत पथ का अनुयायी बने। वह अपने वर्तमान जीवन को भी स्वर्ग की तरह जीए और मरणोपरांत भी स्वर्ग-पथ का अनुगामी बने। हम में से हर कोई व्यक्ति स्वर्ग का सुख पाए, स्वर्ग के गीत गुनगुनाए, यह वांछित है। सामान्य तौर पर यह सर्वसाधारण की मान्यता है कि आकाश स्वर्ग का घर है और पाताल नरक का। आदमी का स्वार्थ, हिंसा और बुराइयों में गिरना पाताल की ओर लुढ़कना है, वहीं सेवा, शांति और सच्चाई की ओर बढ़ना आकाश की ऊँचाई को छूना है। स्वर्ग और | 23 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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