Book Title: Dharm me Pravesh
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 30
________________ लगाने की कला आ जाए तो हाथी को भी वश में किया जा सकता है। किसी का सुधरना या सुधारना मुश्किल है, पर अगर व्यक्ति खुद ही सुधरने के लिए जागरूक हो जाए तो दुनिया में ऐसी कौन-सी अड़चन है, जिससे पार न पाया जा सकता हो। अंकुश लगाने की कला आ जाए, तो हाथी को भी वश में किया जा सकता है। दीप जलाने का ज़ज़्बा पैदा हो जाए तो उसकी रोशनी में अंधेरे को दूर किया जा सकता है। हमें अपने जीवन की मर्यादाएँ तय करनी होंगी। कुछ ऐसे संकल्प हर रोज़ सुबह और शाम दोहराने होंगे। जैसे : मैं अपने शरीर को स्वस्थ-प्रसन्न-पवित्र रलूँगा। मैं अपने विचारों को स्वस्थ-प्रसन्न-पवित्र रखूगा। मैं अपनी बुद्धि को स्वस्थ-प्रसन्न-पवित्र रखूगा। वस्तुतः शारीरिक, वैचारिक और बौद्धिक स्वस्थता-प्रसन्नता और पवित्रता ही जीवन की स्वस्थता, प्रसन्नता और पवित्रता का आधार है। सुकृत मार्ग पर बढ़ने वाले संकल्प, विचार और व्यवहार जीवन के लिए अमृत हैं। विकृत मार्ग पर चलता हुआ जीवन हमारे लिए विषपान है। मन के विकारों और संवेगों की परितृप्ति के लिए तो अब तक ढेर सारे प्रयास हो गए, किन्तु मन की शान्ति और बुद्धि की पवित्रता के लिए हमें सजग होना चाहिए। यदि मन से ऊपर उठकर अतिमनस् जगत् में जी सकें तो हम उस जगत् में जी सकते हैं जो निष्कषाय और निर्विकार है, आनन्द और अहोभाव से परिपूर्ण है। हम मन को निर्मल, निर्विकल्प करके ही भीतर की निर्मल स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। हम प्रतिदिन स्नान करें, साफ-सुथरे कपड़े पहनें। स्वास्थ्य-लाभ | 29 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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