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मानवीय मूल्यों की स्थापना के लिए प्रयत्नशील दिखाई देते हैं। कोई भी धर्म हमें आपस में लड़ना, वैर-विरोध रखना नहीं सिखाता। 'मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना, हिंदू हैं हमवतन हैं, हिंदुस्ता हमारा' धर्म हमें आपस में प्रेम रखना सिखाता है। कृपया हम धर्म का राजनीतिकरण न करें। राजनीति में धर्म का प्रवेश हो, यह राजनीति के लिए शुभ है, पर धर्म में राजनीति हो धर्म के लिए यह अशुभ है।
धर्म को अब मानवीय हो जाना चाहिए तभी धर्म मनुष्य का कल्याण कर सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि धर्म का जन्म ही मनुष्य के लिए हुआ है, मनुष्य का जन्म धर्म के लिए नहीं। भला जो मानवता का भला न कर सके, वह धर्म कैसे हो सकता है? वह कार्य ही धर्म है जिससे स्वयं का भी हित हो और औरों का भी। अमंगलकारी कृत्य, अमंगलकारी सोच, अमंगलकारी अभिव्यक्ति अधर्म ही है। धर्म का पहला लक्ष्य ही सबकी स्वस्ति-मुक्ति है। 'मंगल करना' धर्म का पहला कार्य है। परम्परा का बाना पहन चुके धर्म के नाम पर हम आपस में एक होना चाहेंगे, मानवता के मंच पर एकता के दीप जलाना चाहेंगे तो यह सम्भव नहीं लगता। हिन्दुस्तान में एक हजार वर्षों से हिन्दू भी रहते आए हैं और मुसलमान भी। कोशिशों में कमी नहीं रही, पर दोनों के दिल कभी एक नहीं हो सके। नतीजतन, धर्मानुरागी देश में भी धर्म-निरपेक्षता का संविधान बनाना पड़ा। जब तक अलग-अलग जाति, परम्परा, सम्प्रदाय के लोग इस देश या किसी देश में रहते रहेंगे, तब तक धर्म-निरपेक्षता या सर्वधर्म समानता का दृष्टिकोण ही श्रेष्ठ है।
व्यक्ति-व्यक्ति की शुद्धि होनी चाहिए। व्यक्ति ही हर समाज और राष्ट्र की इकाई है। सामूहिक प्रयास बहुत हो गए। अब नये 16 |
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