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मूल्यवान है। शरीर का सौन्दर्य आँखों को सुहाता है, पर आत्मा का सौन्दर्य परमात्मा को। हमारा तन, मन, जीवन, प्राण और आत्मा स्वस्थ हो, सुंदर हो, सुखकर हो, हमारा यही प्रयास हो।
हमें मन की शांति को सबसे ज़्यादा मूल्य देना चाहिए। मन में अगर शांति है तो थोड़े से साधन भी सुख देंगे। मन में शांति का अभाव हो तो सोने और चाँदी के पहाड़ भी मिल जाएँ तो भी वे काटने को दौड़ेंगे। अन्तरमन में शान्ति न हो तो शेष शान्ति का मतलब क्या? आचरण का ढोंग और विचारों में अशांति दोहरापन नहीं तो और क्या है? बीमार आदमी को स्वास्थ्य चाहिए। वह लाखों के धन को क्या चाटेगा? आत्म-बोध और आत्म-निर्मलता से सच्ची सुख-शान्ति का अनुभव होता है। इसके लिए जरूरी है कि हम पहचानें कि हम कौन हैं, कहाँ से आए हैं, हमारी पीड़ाएँ और विकृतियाँ क्या हैं, वे हमें क्यों घेर लेती हैं? अपने आपको सुखी कैसे किया जा सकता है अथवा मुक्त कैसे हुआ जा सकता है? इन प्रश्नों पर विचार करेंगे तो हम स्वतः धर्म के सच्चे स्वरूप से जुड़ जाएँगे। हम अंधे की तरह गतानुगतिक न चलें और प्रज्ञा के नेत्रों से सत्य को समझें।
सच्ची शान्ति मनुष्य को अन्तरात्मा में ही उपलब्ध हो सकती है। कषाय, विकार और जन्म-जन्मान्तर के संस्कारों से विलग रहकर आनंद-भाव के साथ उनका विसर्जन करने से ही अन्तरमन में सुखशान्ति निर्झरित हो सकते हैं। जिससे हमारी असत् वृत्तियाँ तथा प्रवृत्तियाँ मिटें, वही धर्म है, अध्यात्म है। हम वही क्रियाएँ आचरित करें जिनसे अन्तरमन निर्मल हो, मंगलमय हो।
हमारा जन्म किसी की बनी-बनाई लीकों-लकीरों पर चलते रहने के लिए नहीं हुआ है। धर्म के नाम पर हम जो कुछ करते हैं, अगर
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