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चित्र - ५,
१२
है । यह कायोत्सर्ग खडे रह कर या बैठ कर किस प्रकार करना चाहिये उसका निर्देश चित्र नं. ३ करता है ।
चित्र - ४, सामायिक की मुद्रा
सामायिक में किस प्रकार बैठना : कितने उपकरण रखना और वस्त्र किस प्रकार रखना ? साथ ही मुँह पास प्रतिलेखन किस प्रकार बैठ कर करना चाहिये ? इस बात का ज्ञान चित्र नं. ४ करता है ।
६, तीन मुद्राएँ
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आराधना में मुद्राओं का अत्यन्त ही महत्त्व है । चैत्यवन्दन में तीन मुद्राओं का उपयोग होता है । जिन में पहली 'योगमुद्रा' नमोत्थुणं बोलते समय होती है, दूसरी 'मुक्ताशुक्तिमुद्रा' का उपयोग 'जावंती चेहयाई' 'जावंत के वि साहू' और 'जय वीयराय' बोलते समय होता है जो चित्र नं. ५ में दिखाया गया है । 'जिनमुद्रा' का उपयोग 'अरिहंतचेइयाणं' और अन्नत्थ ० बोलते वक्त होता है जो चित्र नं. ६ में स्पष्ट गोचर होता है ।
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