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ईश्वर : एक चिन्तन | २३ जन-जन का उद्धार करता है । वह यह दृढ़ संकल्प करता है कि मैं प्राणियों का उद्धार करूंगा। प्रस्तुत संकल्प का मूल आधार है सत्त्व गुण की प्रकृष्टता।
व्यास ने भाष्य में यह स्पष्ट प्रतिपादन नहीं किया है कि वह पुरुष विशेष ईश्वर सृष्टि का कर्ता और संहर्ता भी है। तथापि यह स्पष्ट है कि भाष्यकार ने ईश्वर को प्राणियों का उद्धारकर्ता माना है। उसके पश्चात् भाष्य के आधार से व्याख्या करने वाले वाचस्पति मिश्र एवं विज्ञान भिक्षु ने क्रमशः तत्ववैशारदी और योगवार्तिक में ये विचार स्पष्ट रूप से उट्टंकित किये हैं कि ईश्वर सृष्टि का कर्ता है । उनकी संस्थापना का मूल आधार आगम-प्रमाण है।
मध्व वेदान्त दर्शन में द्वैत परम्परा के मूल प्रतिष्ठापक हैं, तथापि उनका दार्शनिक चिन्तन न्याय-वैशेषिक तत्वज्ञान से प्रभावित है । उन्होंने ब्रह्मसूत्र, उपनिषद्
और गीता के आधार पर भाष्य लिखकर अपने मौलिक विचारों की संस्थापना की। न्याय-वैशेषिक तत्त्व ज्ञान के प्रभाव के कारण मध्व की परम्परा अन्य वेदान्तियों से पृथक् प्रतीत होती है । उन्होंने न्याय-वैशेषिक दर्शन के अनुसार अचेतन परमाणु और चेतन जीव के वास्तविक बहुत्व के अतिरिक्त सर्वथा स्वतन्त्र ईश्वर की व्यक्ति के रूप में संस्थापना की। उसमें ब्रह्म या विष्णु जैसे पद के द्वारा ईश्वर का निर्देश किया गया है । तथापि स्वरूप की दृष्टि से हम चिन्तन करें तो मध्व की परम्परा में ईश्वर के स्वरूप का जो चित्रण हुआ है, वह चित्रण न्याय, वैशेषिक, सांख्य और योग सदृश ही है । वह ईश्वर सृष्टि का कर्ता और संहर्ता है । न्याय-वैशेषिक दर्शन ईश्वर को प्राणि कर्म सापेक्ष्य कर्ता मानता है। वैसे मध्व भी मानता है, पर अन्तर यही है कि मध्व दर्शन ब्रह्मसूत्र के आधार से ईश्वर को ब्रह्म कहकर उसका विवेचन करता है, जबकि न्याय-वैशेषिक दर्शन ईश्वर की संस्थापना करने के लिए ब्रह्मसूत्र और उपनिषद् आदि का आधार नहीं लेते । उपनिषद् का आधार होने के कारण ही उनका ईश्वर कर्तृत्ववाद आगम प्रमाण पर आधृत है ।
पूर्वमीमांसक, सांख्य, बौद्ध और जैन दर्शन स्वतन्न्न जीव बहुत्ववादी हैं । पर वे दर्शन जीव से पृथक् किसी भी ईश्वर तत्व को सृष्टि का कर्ता और संहर्ता नहीं मानते।
ब्रह्मवादी दृष्टि से ईश्वर मध्व के अतिरिक्त अन्य ब्रह्मवादी दर्शन सामान्य रूप से एक तत्ववादी हैं। वह एक तत्व सांख्यदर्शनसम्मत प्रकृति या प्रधान नहीं अपितु उससे भिन्न ब्रह्मतत्व है । सांख्य का प्रधान तत्व मूल में अचेतन माना गया है तो ब्रह्मतत्व मूल में चिद्र प माना
1 (क) प्रकृष्ट सत्त्वोपादानादीश्वरस्य शाश्वतिक उत्कर्षः ।
-योगभाष्य, १-२४ । (ख) तस्य आत्मानुग्रहाभावेऽपि भूतानुग्रहः प्रयोजनम् ॥
-योगभाष्य, १-२५ ।
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