Book Title: Chintan ke Vividh Aayam
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 189
________________ ७८ [ चिन्तन के विविध आयाम [खण्ड २] आवश्यक माने हैं । कितने ही विज्ञ अपनी विद्वत्ता प्रदर्शित करने के लिए अलंकारों का प्रदर्शन करते थे। इसलिए रुद्रट, वाग्भट और विश्वनाथ का मन्तव्य था कि अलंकार आवश्यक तो हैं किन्तु अनिवार्य नहीं। महाकाव्य का छन्दोबद्ध होना आवश्यक है। दण्डी का मानना है-महाकाव्य' का छन्द अत्यन्त श्रुतिमधुर होना चाहिए और सर्ग के अन्त में भिन्न छन्द का प्रयोग होना चाहिए । आचार्य हेमचन्द्र का मन्तव्य है-अर्थ के अनुकूल छन्द का प्रयोग होना चाहिए । यदि समस्त काम्य में एक छन्द भी हो तो एतराज नहीं है । विश्वनाथ और दण्डी यह भी मानते हैं कि एक ही सर्ग में विविध छन्दों का प्रयोग भी हो सकता है। महाकाव्य में प्रसंग के अनुसार माधुर्य, प्रसाद और ओज गुणवाली भाषा का प्रयोग होना चाहिए । भामह का मानना है-महाकाव्य में साहित्यिक भाषा अपेक्षित है । उसमें ग्राम्य शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए। दण्डी और हेमचन्द्र की दृष्टि से भाषा सरल, सरस और वोधगम्य होनी चाहिए। रति के प्रकर्ष के लिए कोमलकान्त पदावली का प्रयोग हो। उत्साह के प्रकर्ष के लिए प्रौढ़ और क्रोध के लिए कठोर शब्दों का प्रयोग आवश्यक है । कवि को भाषा पर असाधारण अधिकार होना चाहिए जिससे वह अपने मन्तव्य को साधिकार व्यक्त कर सके। विश्वनाथ के अतिरिक्त सभी आचार्यों ने धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों की उपलब्धि महाकाव्य का उद्देश्य माना है । विश्वनाथ किसी एक पुरुषार्थ को भी महाकाव्य का उद्देश्य मानते हैं । भारतीय मूर्धन्य मनीषियों ने जिस प्रकार महाकाव्य के बारे में चिन्तन किया है। उसी तरह पाश्चात्य विज्ञों ने भी उस पर चिन्तन किया है । लार्ड केम्स के अनुसार वीरतापूर्ण कार्यों का उदात्त शैली में वर्णन महाकाव्य है। लवस्स (फेच. विद्वान्) के अनुसार महाकाव्य ऐसा रूपक है जिसमें प्राचीन महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन पद्यबद्ध रूप से किया जाय । हाब्स की दृष्टि से वीरतापूर्ण समाख्यानात्मक कविता महाकाव्य है । लैफकैडियो हर्न' का मन्तव्य है कि महाकाव्य संपूर्ण जाति के आदर्शों की पद्यबद्ध अभिव्यक्ति करने वाला काव्य है। विलियम रोज बेनिट', 1 M. Dixon, English Epic & Heroic Poetry, Page 18. 2 Ibid, Page 2. 8 Ibid, Page 22. हिन्दी महाकाव्य एवं महाकाव्यकार, ले० श्री रामचरण महेन्द्र पृ० १४ से उद्ध त । 5_Mr. William Rose Benit "The Reader's Encylopedia" Page 345. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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