Book Title: Chintan ke Vividh Aayam
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 190
________________ राजस्थान के प्राकृत श्वेताम्बर साहित्यकार | ६६ कश्मीर विजय कर जब लौटा, तो अनेक आचार्यों एवं साधुओं का उसने सम्मान किया । उनमें एक समयसुन्दरजी भी थे । उन्हें वाचक पर प्रदान किया गया। इन्होंने वि० सं० १६८६ ई० सन् १६२६ में 'गाथा सहस्री' ग्रन्थ का संग्रह किया। इस ग्रन्थ पर एक टिप्पण भी है, पर उसके कर्ता का नाम ज्ञात नहीं हो सका है। इसमें आचार्य के छत्तीस गुण, साधुओं के गुण, जिनकल्पिक के उपकरण, यति दिनचर्या, साढ़े पच्चीस आर्य देश, ध्याता का स्वरूप, प्राणायाम, बत्तीस प्रकार के नाटक, सोलह शृगार, शकुन और ज्योतिष आदि विषयों का सुन्दर संग्रह है। महानिशीथ, व्यवहारभाष्य, पुष्पमाला वृत्ति आदि के साथ ही महाभारत, मनुस्मृति, आदि संस्कृत के ग्रन्थों से भी यहाँ पर श्लोक उद्धृत किये गये हैं। ठक्कुर फेरू ठक्कुर फेरू राजस्थान के कनाणा के निवासी श्वेताम्बर श्रावक थे । इनका समय विक्रम की १४वीं शती है। ये श्रीमाल वंश के धोंधिया [धंधकुल गोत्रीय श्रेष्ठी कालिम या कलश के पुत्र थे। इनकी सर्वप्रथम रचना युगप्रधान चतुष्पादिका है, जो संवत् १३४७ में वाचनाचार्य राजशेखर के समीप अपने निवासस्थान कन्नाणा में बनाई थी। उन्होंने अपनी कृतियों के अन्त में अपने आपको 'परम जैन' और 'जिणंदपय भत्तो' लिख कर अपना कट्टर जैनत्व बताने का प्रयास किया है । 'रत्न परीक्षा में अपने पुत्र का नाम 'हेमपाल' लिखा है । जिसके लिए प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना की गयी है । इनके भाई का नाम ज्ञात नहीं हो सका है। दिल्लीपति सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के राज्याधिकारी या मंत्रीमण्डल में होने से इनको बाद में अधिक समय दिल्ली रहना पड़ा । इन्होंने 'द्रव्य परीक्षा' दिल्ली की टकसाल के अनुभव के आधार पर लिखी । गणितसार में उस युग की राजनीति पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। गणित प्रश्नावली से यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि ये शाही दरबार में उच्च पदासीन व्यक्ति थे। इनकी सात रचनाएँ प्राप्त होती हैं, जो बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। इनका • सम्पादन मुनिश्री जिनविजय जी ने 'रत्न परीक्षादि सप्त ग्रन्थ संग्रह' के नाम से किया है। युगप्रधान चतुष्पादिका तत्कालीन लोकभाषा व चौपाई, छप्पय में रची गई है, और शेष सभी रचनाएँ प्राकृत में हैं । भाषा सरल व सरस है, उस पर अपभ्रश का प्रभाव है। जयसिंहमूरि "धर्मोपदेशमाला विवरण"2 जयसिंह सूरि की एक महत्वपूर्ण कृति है, जो गद्य-पद्य मिश्रित है । यह ग्रन्थ नागोर में बनाया था। 1 प्रकाशक-सिंघी जैन ग्रन्थमाला-बम्बई ३ प्रकाशक-सिंघी जैन ग्रन्थमाला-बम्बई नागउर-'जिणायज्जणे समाणियं विवरणं एवं' • धर्मोपदेशमाला, प्रशस्ति २६, पृष्ठ २३०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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