Book Title: Chintan ke Vividh Aayam
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 217
________________ ११ राष्ट्र का मेरुदण्ड : युवक युवक राष्ट्र का मेरुदण्ड है । वह साहस की धधकती हुई ज्वाला है। धर्म की धुरा का धारक है । वह संस्कृति का सन्देशवाहक है। वह मानव प्रकृति का वसन्त है । तरुण का तन मिट्टी का नहीं, बज्र का बना हुआ होता है। उसका मन हिमालय की तरह उन्नत होता है, और सागर की तरह व्यापक होता है। उसका तन हो नहीं, मन भी उदात्त चिन्तन को लिए हुए होता है । वह धर्म, सम्प्रदाय, समाज में आबद्ध होकर के भी किसी भी संकीर्ण घेरे में बद्ध नहीं होता। उसका कर्म रूपी रथ श्री कृष्ण के रथ की भांति निरन्तर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना जानता है । कोई भी शक्ति उसके रथ को रोक नहीं सकती । चाहे कैसी भी कठिन परिस्थिति हो, वह हँसता और मुस्कराता हुआ आगे बढ़ता है । स्वयं साक्षात् मौत भी उसके सामने खड़ी हो, वह मौत से भी नहीं डरता। वह स्वयं हँसता है और जो भी उसके सन्निकट आता है, उसको भी हँसाता है । उसे स्वयं के सुख और दुःख की किंचित् मात्र भी चिन्ता नहीं होती । वह सतत् दूसरों के ही सुख और दुःख की चिन्ता करता है। उसके अन्तर्मानस की एक ही इच्छा होती है कि संसार के सभी जीव सुख के अनन्त सागर पर तैरते रहें; उनके जीवन को दुःख की काली आंधी कभी भी प्रभावित न करे। युवक राष्ट्र का भाग्य निर्माता है। जब शैशव की स्फूर्ति-शौर्य का संस्पर्श पाती है तो वह कमनीय कल्पना के अनुसार निर्माण कार्य में संलग्न हो जाती है और देखते ही देखते विश्व का कायाकल्प हो जाता है। विश्व के रंगमंच पर जब भी क्रान्ति की स्वर-लहरियां झंकृत हुई हैं, उसका सूत्रधार युवक रहा है। जिस राष्ट्र में युवाशक्ति प्रबुद्ध होती है, वह राष्ट्र अत्यन्त भाग्यशाली होता है। युवक, समाज व राष्ट्र का सच्चा एवं अच्छा सजग प्रहरी है। वर्तमान युग जागरण का युग है। यवक शक्ति अंगड़ाई लेकर उठ रही है । उसके जीवन के कण-कण में शक्ति और स्फूति तरंगित हो रही है। उसके मन में चिन्तन की निर्मल गंगा बह रही है । वाणी में मधुरता की यमुना प्रवाहित हो रही है और उसके कर्म में कर्तव्यनिष्ठा की सरस्वती का वज्र आघोष है। युवक शक्ति यदि चाहे तो नरक को रंगीन स्वर्ग में बदल सकती है और काँटों को फूलों के रूप में परिवर्तित कर सकती है। उसकी शक्ति अद्भुत है, अनोखी है और निराली है। कोई भी शक्ति उसकी प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकती। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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