Book Title: Chintan ke Vividh Aayam
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 218
________________ राष्ट्र का मेरुदण्ड : युवक | १०७ युवक की जगमगाती हुई विमल विचारधाराएँ सम्प्रदायवाद, गलत परम्परा - व अन्धविश्वास से सदा मुक्त रही है। वह सदा ही खल-भाग का परित्याग कर रसभाग को ग्रहण करती रही है । वह कभी भी कष्टों से घबराता नहीं, कष्टों की आंधी आने पर भी उसका जोश कभी कम नहीं होता । चाहे कितनी भी कठिनाईयाँ आवे, वे उसके मार्ग को अवरुद्ध नहीं कर सकतीं। वह स्वर्ण की भांति कष्टों की aana हुई ज्वालाओं में गिर करके अधिक चमकता है, दमकता है। वह मुर्दे की तरह पड़ा रहना पसन्द नहीं करता है, और न रुग्ण व्यक्ति की तरह आठ-आठ आंसू बहाना उसे पसन्द ही है। उसके तन में ही नहीं, मन में भी गर्मी होती है । उसका रक्त खौलता हुआ होता है । इसीलिए वह संसार का नव निर्माण कर सकता है । अमेरिका के स्वर्गीय राष्ट्रपति श्री केनेडी ने युवक की परिभाषा करते हुए कहा है- "जो व्यक्ति खतरे को मोल लेना जानता है, और ले सकता है, वह युवक है । जो खतरों से घबराता है वह बूढ़ा है । वह कुछ भी निर्माण कार्य नहीं कर सकता" । 3. बालक का तन भी निर्बल होता है और मन भी ! वहन गहराई से चिन्तन कर सकता है और न कार्य ही ! वृद्ध की चिन्तन शक्ति प्रबुद्ध होती है, किन्तु तन जर्जरित होने के कारण वह कार्य करने में सक्षम नहीं होता । उसके अन्तर्मानस में करने की प्रबल भावना होती है तो भी वह तन की निर्बलता के कारण कार्य नहीं कर पाता । पर युवक के तन में हनुमान की तरह शक्ति होती है । जिस शक्ति से वह असम्भव कार्य भी सम्भव कर लेता है । और उसका मन भी चिन्तन करने के लिए सक्षम होता है । तन और मन का सुमेल युवक में होता है । इसलिए उसके शब्दकोश में "असम्भव" शब्द नहीं होता । उदासीनता और खिन्नता उसके आसपास में नहीं होती । कान्ति और नव निर्माण की इस प्रभात वेला में युवक शक्ति से एक खतरा पैदा हो गया है और वह — असंयम, अनास्था, उच्छृंखलता, और अनुशासनहीनता, जिसके कारण उसकी जीवन दिशाएँ धुंधली पड़ गयी हैं । और सही मार्ग पर बढ़ने के लिए उसके कदम लड़खड़ा रहे हैं, डगमगा रहे हैं। युवक शक्ति की इस विषम परिस्थिति से विश्व के सभी भाग्य विधाता चिन्तित हैं । प्रत्येक राष्ट्र का युवक इस भयंकर झंझावात से घिरा हुआ है | प्रतापपूर्ण प्रतिभा के धनी युवा चेतना को किस प्रकार अनुशासित बनाया जाय ? उनमें किस प्रकार संयम, आस्था, और कर्त्तव्यनिष्ठा जागृत की जाय ? उसके अदम्य शक्ति प्रवाह को । जो निर्वाण की दिशा में बह रहा है, उसे किस प्रकार निर्माण की दिशा में मोड़ा जाय ? जिससे वह राष्ट्र का सही सृजन कर सकें । धर्म, नीति और संस्कृति की ज्योति को प्रदीप्त कर सकेँ । जहां तक मैं समझा हूँ, युवक में आस्था भी है, जिज्ञासा भी है, धर्म, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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