Book Title: Chintan ke Vividh Aayam
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 206
________________ स्थानकवासी परम्परा के एक आध्यात्मिक कवि श्रीनेमीचन्द जी महाराज | ६५ उनकी वाचा सिद्ध हो गयी थी। और वे पंचम आरे के केवली के रूप में विश्रुत थे । उनके दिव्य प्रभाव से प्रभावित होकर आपश्री भी ध्यानयोग की साधना किया करते थे । ध्यानयोग की साधना से आपका आत्मतेज इतना अधिक बढ़ गया था कि भयप्रद स्थान में भी आप पूर्ण निर्भय होकर साधना करते थे। एक बार आपश्री का चातुर्मास निम्बाहेड़ा (मेवाड़) में था। वहां पर साहड़ों की एक छह मंजिल की भव्य बिल्डिंग थी। उस हवेली में कोई भी नहीं रहता था। महाराज श्री ने लोगों से पूछा-यह हवेली खाली क्यों पड़ी है इसमें लोग क्यों नहीं रहते हैं जबकि गाँव में यह सबसे बढ़िया हवेली है। लोगों ने भय से काँपते हुए कहा-महाराजश्री ! इस हवेली में भून का निवास है जो किसी को भी शान्ति से रहने नहीं देता । महाराजश्री ने कहा-यह स्थान बहुत ही साताकारी है। हम इसी स्थान पर वर्षावास करेंगे । लोगों ने महाराजश्री को भयभीत करने के लिए अनेक बातें कहीं, किन्तु महाराज श्री ने उनकी बातों पर ध्यान न देकर वहीं चातुर्मास किया । चार माह तक किसी को कुछ भी नहीं हुआ। आध्यात्मिक साधना से भूत का भय मिट गया। __इसी तरह कम्बोल गांव में सेठ मनरूपजी लक्ष्मीलाल जी सोलंकी का मकान भयप्रद माना जाता था। वहाँ पर भी चातुर्मास कर उस स्थान को भयमुक्त कर दिया। वि० सं० १९५६ में नेमीचन्द जी महाराज तिरपाल पधारे, और आपश्री के उपदेश से श्री प्यारचन्द जी भैरूलाल जी दोनों भ्राताओं ने भागवती दीक्षा ग्रहण की और माता तीजाबाई ने तथा सोहनकुंवरजी ने भी महासती रामकुंवरजी महाराज के पास दीक्षा ग्रहण की । महासती सोहनकुंवरजी महाराज बहुत ही भाग्यशाली, प्रतिभा सम्पन्न एवं चरित्र निष्ठा सती थीं। __ आपश्री की प्रवचन शैली अत्यधिक चित्ताकर्षक थी । आगम के गहन रहस्यों को जब लोक-भाषा में प्रस्तुत करते थे तब जनता झूम उठती थी । आपकी मेघ गम्भीर गर्जना को सुनकर श्रोतागण चकित हो जाते थे। रात्रि के प्रवचन की आवाज शान्त वातावरण में दो मील से अधिक दूर तक पहुँचती थी । और जब श्रीकृष्ण के पवित्र चरित्र का वर्णन करते, उस समय का दृश्य अपूर्व होता था। कविवर्य नेमीचन्द जी महाराज श्रेष्ठ कवि थे । उनका उदय हमारे साहित्याकाश में शारदीय चन्द्रमा की तरह हुआ। उन्होंने निर्मल व्यक्तित्व और कृतित्व की शारदीय स्निग्ध ज्योत्सना से साहित्य संसार को आलोकित किया तथा दिदिगन्त में शुभ्र शीतल प्रभाव को विकीर्ण करते रहे। वे एक ऐसे विरले रस सिद्ध कवियों में से थे, जिन्होंने एक ही साथ अज्ञ और विज्ञ, साक्षर-निरक्षर सभी को समान रूप से प्रभावित किया। उनकी रचनाओं में जहां पर आत्म-जागरण की स्वर लहरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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