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es | चिन्तन के विविध आयाम [ खण्ड २ ]
"सुणो-सुणो नर-नार, वैराग उपजे जीव ने दश परकार । ज्यारो घणो अधिकार, शास्त्र में ज्यारो है बहु विस्तार ॥ पहले बोले साधुजी रो दर्शन होय । मृगापुत्र नी परे ...... लीजोजी जोय ॥
इसी तरह जम्बुद्वीप प्रज्ञप्ति के आधार से आपने 'भरत पच्चीसी' का निर्माण किया जिसमें संक्षेप में सम्राट भरत के षट्खण्ड के दिग्विजय का वर्णन है ।
दौलत मुनि हंस मुनि की कम्बल तस्कर ले जाने पर आपश्री ने भजन निर्माण किया, जिसमें कवि की सहज प्रतिभा का चमत्कार देखा जा सकता है ।
पूज्यश्री पूनमचन्द जी महाराज के जीवन का संक्षेप में परिचय भी दिया है जो ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है ।
निव सप्तढालिया का ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है । कवि मानवता का पुजारी है, मानवता के लिये विरोधियों पर उसकी वाणी अंगार बनकर बरसती है, अनाचार की धुरी को तोड़ने के लिए और युग की तह में छिपी हुई बुराइयों को नष्ट करने के लिए उनका दिल क्रान्ति से उद्व ेलित हो उठा है । वे विद्रोह के स्वर में बोले हैं, उनकी कमजोरियों पर तीखे बाण कसे हैं और साथ ही अहिंसा की गम्भीर मीमांसा प्रस्तुत की है।
"
पक्खी की चौबीसी में अनेक ऐतिहासिक, पौराणिक और आगमिक कथाएं दी गयी हैं और क्षमा का महत्व प्रतिपादन किया गया है। लोक कथायें भी इसमें आयी हैं ।
नेम-वाणी के उत्तराद्ध में चरित्र कथाएँ हैं । क्षमा के सम्बन्ध में गजसुकुमार, राजा प्रदेशी, स्कन्दक मुनि और आचार्य अमरसिंहजी महाराज आदि के चार उदाहरण देकर विषय का प्रतिपादन किया है । दान, शील, तप और भावना के चरित्र में एक-एक विषय पर एक-एक कथा दी गयी है । नमस्कार महामन्त्र पर तीन कथाएं दी गई हैं । महाव्रत की सुरक्षा के लिए ज्ञाताधर्मकथा की कथा को कवि ने बड़े ही सुन्दर रूप से चित्रित किया है । लंकापति रावण की प्रेरणा से उत्प्रेरित होकर महारानी मन्दोदरी सीता के सन्निकट पहुंची। उसने रावण के गुणों का उत्-कीर्तन किया, किन्तु जब सीता विचलित न हुई और वह उल्टे पैरों लौटने लगी तब सीता ने उसे फटकारते हुए कहा
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" पाछी जावण लागी बोलं वचन सुण अबको । उभी रहे मन्दोदरी नार लेती जा लबको ॥ अब सुण ले मेरी बात राज जो रूठो । थाने लाम्बी पहरासी हाथ हियो थारो अल्प दिनों को सुख जाणजे खूटो ।
क्यों फूटो ।
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