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४४ / चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १
अधिक प्रिय हुई । किन्तु बाद में देवता सम्बन्धी विश्वास परिवर्तित होते गये । इतिहासकार हिरोटोडस ने ईश्वर को मूर्त और अमूर्त दोनों रूपों में माना है। उसने यह भी उल्लेख किया है कि देवता क्रूरता के प्रतीक हैं । इस प्रकार निराशावाद के तत्त्व पनपने लगे और शनैः-शनैः ईश्वर के स्थान पर नियति की तीन अन्धी देवियाँ प्रस्थापित हुई।
ईसा के पूर्व पांचवीं सदी में ऐसी कल्पना प्रचलित हुई कि देवता जन-जीवन की विषमता को और विरोधों को मिटाते हैं । वे समन्वय और शान्ति के पुनीत प्रतीक हैं । ये सच्चे न्याय प्रदाता हैं । उसके पश्चात् यूनानी यह मानने लगे कि मानवीयजीवन में जो भी उतार-चढ़ाव आते हैं, उनका कारण मानव का स्वयं पुरुषार्थ है, किन्तु दैवी-शक्तियाँ कुछ नहीं करती हैं ।
सुकरात ने सत्य को ही ईश्वर माना । उसने पुरानी कल्पना पर आधृत देवकहानियों को मिथ्या बताया। प्लेटो ने ईश्वर को अप्राकृतिक माना और असहज मानव के रूप ईश्वर की कल्पना की। वह ईश्वर को 'शिवम्' मानता है। ईश्वर कभी भी राग-द्वेष नहीं करता, सारी दुनिया ईश्वर की इच्छा से चल रही है । ईश्वर ही 'अटलास' है, जिसके बलिष्ठ कन्धों पर पृथ्वी टिकी हुई है। उसने एकेश्वरवाद को महत्त्व दिया । फिर यूनानी चिन्तनधारा में दो विभाग 'हुए । एक विभाग एपिक्यूरस का सिद्धान्त है । उस सिद्धान्त की तुलना चार्वाकदर्शन से की जा सकती है। वह "खाओ, पीओ और मौज उड़ाओ" (Eat, drink & be merry) इस बात पर बल देता है । दूसरा विभाग स्टोइक है, जिसने मानव के अन्तर्मानस और दृढ़-संकल्प में ईश्वरेच्छा को प्रधान स्थान दिया। उन्होंने आत्म-संयम पर बल दिया है।
ईसा की प्रथम सदी तक मिस्र और ईरान के धर्मों के प्रभाव से यूनानियों में बहुदेववाद और एकेश्वरवाद का द्वन्द्व समाप्त हो गया और एकेश्वरवाद स्थिर हुआ। ट्यूटानिक जातियों में ईश्वर-कल्पना
ट्यूटानिक लोग पहले चार प्रकार के देवों में विश्वास रखते थे -(१) वूआनाज (मृतकों और हवाओं का देवता), (२) पोदाराज (तूफानी गरज और आकाश का देवता), (३) तीवाज (युद्ध का देवता), (४) फ्रिआ या फ्रिग देवी (प्रिया या पत्नी)। नार्वे में भूत-प्रेतों पर जन-मानस की ही निष्ठा थी। जो सबसे बड़ा था वह 'भूतनाथ' या 'महादेव' था। उसे वे अपनी भाषा में “वोदान" कहते थे । उन लोगों का विश्वास था कि वोदान जीवन और मरण का स्वामी है। वह बहुत ही क्रूर है, वह मानवों के प्राण-हरण कर लेता है। वह शनैः-शनैः युद्ध देवता के रूप में उपास्य हो गया और उसके पश्चात् वह आकाश देव के रूप में आराध्य बना तथा वह प्राचीन पितृ देवता "असास" भो बन गया । वोदान ईहन और दोनार पोर थोर तथा ज्युतीर अन्य देवों के नाम थे । इनके अतिरिक्त फे, होल्डेर, या वाल्डेर, हारमडालूट आदि छोटे देवता भी थे।
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