Book Title: Chintan ke Vividh Aayam
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 184
________________ भारतीय साहित्य में काव्य-मीमांसा | ७३ कला है । 'काव्यालंकार' ग्रन्थ में आचार्य भामह ने स्पष्ट रूप से लिखा है-ऐसा कोई शब्द नहीं, ऐसा कोई वाक्य नहीं, ऐसी कोई विद्या नहीं और ऐसी कोई कला नहीं जो काव्य का अंग होकर न आये। काव्य क्या है ? इस प्रश्न पर अतीत काल से ही चिन्तन चलता रहा है । विभिन्न मनीषियों ने विभिन्न दृष्टियों से उत्तर देने का प्रयास किया है । किन्तु काव्य की सर्वसम्मत परिभाषा अभी तक निश्चित नहीं हो सकी है । आचार्य भामह ने "काव्यालंकार" में शब्द और अर्थ को काव्य कहा है । आचार्य दण्डी ने "काव्यादर्श' में शब्दार्थ रूपी शरीर को अलंकृत करने वाले अलंकारों को सर्वाधिक महत्व देकर उसे काव्य की संज्ञा से अभिहित किया है । आचार्य कुन्तक ने 'वक्रोक्ति जीवितम्" में साहित्य उसे माना है जिसमें शब्द और अर्थ का शोभाशाली सम्मिलन होता है-जब कवि अपनी प्रकृष्ट, प्रतिभा से उपयुक्त स्थान पर उपयुक्त शब्द समाविष्ट करता है । जो कुछ भी लेखबद्ध हो जाय वह साहित्य नहीं है, अपितु साहित्य वह है जिसमें हृदय की निर्मल भावना का विस्फोट होता है। साहित्य का श्रेष्ठतम रूप काव्य है। क्योंकि काव्य सुन्दर, सरस और मधुर होता है । उसमें व्याकरणशास्त्र की तरह नीरसता नहीं होती, दर्शन और तर्कशास्त्र की तरह गम्भीरता नहीं होती, और गणितशास्त्र की तरह जटिलता नहीं होती। काव्य में लोकजीवन का मंगल और अखण्ड आनन्द का पयोधि उछालें मारता है। विदग्धता और सौन्दर्यपूर्ण अभिव्यंजना शैली काव्य का प्राण है । आनन्दवर्द्धन के अनुसार-काव्य वह है जिसमें वाच्यार्थ की अपेक्षा व्यंग्यार्थ की प्रधानता हो ।' वामन ने रीति को काव्य की आत्मा माना है। आचार्य मम्मट ने दोषरहित गुणयुक्त अलंकार से समलंकृत शब्दार्थमयी रचना को काव्य की अभिधा दी है। विश्वनाथ ने रसात्मक वाक्य को काव्य कहा है ।” पंण्डित जगन्नाथ ने 'रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाले शब्दों को काव्य कहा है। इसी तरह अग्निपुराणकार 1 शब्दार्थों सहितौ काव्यम् । २ तैः शरीरं च काव्यानामलंकाराश्च दर्शिताः। . शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली ॥ -दण्डी, काव्यादर्श वक्रोक्तिः काव्यजीवितम् । -कुन्तक, वक्रोक्ति जीवितम् • काव्यस्यात्मा ध्वनिः । -ध्वन्यालोक रीतिरात्मा काव्यस्य । -वामन, अलंकार सूत्र 8 तवदोषौ शब्दाथों सगुणावनलंकृती पुनः क्वाऽपि । -मम्मट, काव्यप्रकाश 7 वाक्यं रसात्मकं काव्यम् । . -विश्वनाथ, साहित्यदर्पण 8 रमणीयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम् । - जगन्नाथ, रसगंगाधर 9 संक्षेपाद्वाक्यमिष्टार्थ-व्यवच्छिन्ना पदावली। काव्यं स्फुरदलंकारं गुणवद्दोषवर्जितम् ॥ -अग्निपुराण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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