________________
राजस्थान के प्राकृत श्वेताम्बर साहित्यकार | ७१ जन्म सम्वत् १६४१ में जसवन्तगढ़ (मेवाड़) में हुआ। उनकी मां का नाम विमला बाई और पिता का नाम प्रभुदत्त था। जवाहराचार्य के पास आहती दीक्षा ग्रहण की । आपने बत्तीस आगमों पर संस्कृत भाषा में टीकाएं लिखीं। और शिवकोश नानार्थ, उदय सागर कोश, श्रीलाल नाममाला कोश, आर्हत् व्याकरण, आर्हत् लघु व्याकरण, आईत् सिद्धान्त व्याकरण, शांति सिन्धु महाकाव्य, लोंकाशाह महाकाव्य, जैनागम तत्त्व दीपिका, वृत्त-बोध, तत्त्व प्रदीप, सूक्ति संग्रह, गृहस्थ कल्पतरु, पूज्य श्रीलाल काव्य, नागाम्बर मञ्जरी, लवजी मुनि काव्य, नव-स्मरण, कल्याण मंगल स्तोत्र, वर्धमान स्तोत्र आदि संस्कृत भाषा में मौलिक ग्रन्थों का निर्माण किया । तत्वार्थ सूत्र, कल्पसूत्र और प्राकृत व्याकरण आदि अनेक ग्रन्थ प्राकृतभाषा में भी लिखे हैं । अन्य अनेक सन्त प्राकृत भाषा में लिखते हैं।
आचार्य श्री आत्मारामजी श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ के प्रथम आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज प्राकृत, संस्कृत के गहन विद्वान् और जैन आगमों के तलस्पर्शी अध्येता थे । आपका जन्म पंजाब में हुआ, विहार-क्षेत्र भी पंजाब रहा । प्रस्तुत लेख में विशेष प्रसंग न होने से आपकी प्राकृत रचनाओं के विषय में अधिक लिखना प्रासंगिक नहीं होगा, पर यह निश्चित ही कहा जा सकता है कि आपने प्राकृत साहित्य एवं आगमों की टीकाएँ लिख कर साहित्य भण्डार की श्रीवृद्धि की है । आपके शिष्य श्री ज्ञानमुनि जी भी प्राकृत के अच्छे विद्वान् हैं।
तेरापन्थ सम्प्रदाय के अनेक आधुनिक मुनियों ने भी प्राकृत भाषा में लिखा है। 'रयणवालकहा' चन्दनमुनि जी की एक श्रेष्ठ रचना है। राजस्थानी जैन श्वेताम्बर परम्परा के सन्तां ने जितना साहित्य लिखा है, उतना आज उपलब्ध नहीं है । कुछ तो मुस्लिम युग के धर्मान्ध शासकों ने जन शास्त्र भण्डारों को नष्ट कर दिया और कुछ हमारी लापरवाही से चूहों, दीमक एवं सीलन से नष्ट हो गये । तथापि जो कुछ अवशिष्ट है, उन ग्रन्थों को आधुनिक दृष्टि से सम्पादित करके प्रकाशित किया जाये तो अज्ञात महान् साहित्यकारों का सहज ही पता लग सकता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org