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२० | चिन्तन के विविध आयाम [खण्ड २]
देवद्धिगणी क्षमाश्रमण ने अनुयोगधरों की पट्टावली (स्थविरावली) अंकित की। स्पष्ट है आगम साहित्य में इन्हीं आगमों में स्थविरावलियाँ आई हैं। कल्पसूत्र में स्थविरावली पट्टानुक्रम से है तो नन्दीसूत्र में अनुयोगधरों की दृष्टि से है। पट्टानुक्रम (गुरु-शिष्य क्रम) से देवद्धिगणी का क्रम चौंतीसवां और युगप्रधान (अनुयोगधर) के रूप में सत्ताइसवा है।
यहाँ यह भी स्मरण रखना चाहिए कि कल्पसूत्र की स्थविरावली भी एक समय में और एक साथ नहीं लिखी गई है अपितु उसका संकलन भी आगम वाचना की तरह तीन बार हुआ है । प्रथम आर्य यशोभद्र तक स्थविरों की एक परम्परा निरूपित है जो पाटलीपुत्र की प्रथम वाचना के पूर्व की है। इस वाचना में पूर्ववर्ती स्थविरों की नामावली सूत्र के साथ संकलित की गई है। उसके पश्चात् उसमें दो धाराएं प्रकट हुई हैं। एक संक्षिप्त और दूसरी विस्तृत, जिनकी क्रमशः परिसमाप्ति आर्य तापस और आर्य फग्गुमित्र (फल्गुमित्र) तक होती है, वे द्वितीय वाचना के समय संलग्न की गई हैं और उसके पश्चात् की स्थविरावली देवद्धिगणी क्षमाश्रमण ने अन्तिम वाचना में गुम्फित की है । संक्षिप्त स्थविरावली में मुख्यतः प्रमुख स्थविरों का निर्देश है तो विस्तृत स्थविरावली में मुख्य स्थविरों के अतिरिक्त उनके गुरु भ्राता और उनसे विस्तृत गण-कुल प्रभृति शाखाओं का भी उल्लेख है । जहाँ संक्षिप्त स्थविरावली में आर्य वज्र के चार शिष्य निरूपित किये गये हैं । वहाँ विस्तृत स्थविरावली में तीन शिष्य बताये हैं । उनके नामों में भी अन्तर है, प्रथम में आर्य नागिल,
[क्रमशः में दशाश्रुतस्कंध की प्राचीन एक हस्तलिखित प्रति देखी है. जिसमें आठवें अध्ययन में संपूर्ण कल्पसूत्र है । इस प्रति का उल्लेख श्री पुण्यविजयजी ने कल्पसूत्र की
भूमिका में किया है। 1 जे अन्ते भगवन्ते,
कालिअ सुय आण ओगिए धीरे। ते पणमिऊण सिरसा, नाणस्स परूवणं वोच्छं ॥
--नन्दी स्थविरावली, गा० ४३ ३ देखिए-पट्टावली पराग संग्रह, कल्याणविजय गणी, पृ० ५३ । ३ देखिए-लेखक द्वारा सम्पादित कल्पसूत्र-स्थविरावली-वर्णन । • थेरस्स णं अज्जवइरस्स गोयम गोत्तस्स अंतेवासी चत्तारि थेरा-थेरे अज्जनाइले, थेरे अज्जपोमिले, थेरे अज्जजयंत, थेरे अज्जतावसे ।
-कल्पसूत्र, सू० २०६ ।
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