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४० | चिन्तन के विविध आयाम [खण्ड २] को ललकारा-तुझे महासतियों को परेशान करते हुए लज्जा नहीं आती। हमने तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ा है । महासती की गंभीर गर्जना को सुनकर प्रेतात्मा एक ओर हो गया । महासती लाभकुवरजी ने सभी साध्वियों से कहा जब तक तुम जागती रहोगी तब तक प्रेतात्मा का किंचित् भी जोर न चलेगा । जागते समय जप चलता रहा। किन्तु लंबा विहार कर आने के कारण महासतियाँ थकी हुई थीं। अतः उन्हें नींद सताने लगी। ज्योंही दूसरी महासती नींद लेने लगी त्यों ही प्रेतात्मा उन्हें घसीट कर एक ओर ले चला । गहरा अंधेरा था महासती लाभकुंवरजी ने ज्यों ही अन्धेरे में देखा कि प्रेतात्मा उनकी साध्वी को घसीट कर ले जा रहा है, नवकार मंत्र का जाप करती हुई वे पहुँची और प्रेतात्मा के चंगुल से साध्वी को छुड़ाकर पुनः अपने स्थान पर लायीं और रात भर जाप करती हुई पहरा देती रहीं। प्रातः होने पर उनके तपःतेज से प्रभावित होकर महासतीजी से क्षमा मांगकर प्रेतात्मा वहाँ से चला गया । महासतीजी ने श्रावकों को उपालंभ देते हुए कहा-इस प्रकार भयप्रद स्थान में साध्वियों को नहीं ठहराना चाहिए । श्रावकों ने कहा- हमने सोचा कि हमारी गुरुणीजी बड़ी ही चमत्कारी हैं, इसलिए इस मकान का सदा के लिए संकट मिट जायगा अतः उस श्रावक की प्रार्थना करने पर मौन रहे, अब क्षमा प्रार्थी हैं। महासती जी ने कहा-संकट तो मिट गया पर हमें कितनी परेशानी हुई।
इस प्रकार महासतीजी के जीवन में अनेकों घटनाएं घटी किन्तु उनके ब्रह्मचर्य के तेज व जप-साधना के कारण सभी उपद्रव शांत रहे । महासती श्री लाभकुवरजी की अनेक शिष्याओं में एक शिष्या महासती छोटे आनन्द कुंवरजी थीं। आपकी जन्मस्थली उदयपुर राज्य के कमोल ग्राम में थी। ये बहुत ही मधुरभाषिणी थीं। उनके जीवन में त्याग की प्रधानता थी। इसलिए उनके प्रवचनों का असर जनता के अन्तर्मानस पर सीधा होता था। आप जहाँ भी पधारी वहाँ आपके प्रवचनों से जनता मंत्रमुग्ध होती रही । आपकी अनेक शिष्यायें हुईं। उनमें महासती मोहनकुवरजी महाराज और लहरकुंवरजी महाराज इन दो शिष्याओं का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है।
महासती मोहनकुंवरजी का जन्म उदयपुर राज्य के भूताला ग्राम में हुआ। उनका गृहस्थाश्रम का नाम मोहनबाई था। जाति से आप ब्राह्मण थीं । नौ वर्ष की लघुवय में उनका पाणिग्रहण हो गया । वह पति के साथ एक बार तीर्थयात्रा के लिए गुजरात आयीं । भडोच ने सन्निकट नरमदा में स्नान कर रही थीं कि नदी में पानी का अचानक तीव्र प्रवाह आ गया जिससे अनेक व्यक्ति जो किनारे पर स्नान कर रहे थे पानी में बह गये । मोहनबाई का पति भी बह गया जिससे ये विधवा हो गयीं । उस समय महासती आनन्दकुंवरजी विहार करती हुई भूताले पहुंचीं। उनके उपदेश से प्रभावित हुई । मन में वैराग्य-भावना लहराने लगी। किन्तु उनके चाचा मोतीलाल ने अनेक प्रयास किये कि उनका वैराग्य रंग फीका पड़ जाय । अनेक बार उन्हें थाने के
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