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५४ | चिन्तन के विविध आयाम [ खण्ड २ ]
थीं। उनकी बाईस शिष्याऐं थीं जिनमें से कुछ साध्वियों के नाम प्राप्त हो सके हैं। महासती आनन्दकुंवरजी ने कब दीक्षा ली यह निश्चित संवत् नहीं मिल सका । उनका स्वर्गवास सं० १९८१ पौष शुक्ला १२ को जोधपुर में संथारे के साथ हुआ । महासती आनन्दकुंवरजी के पास ही पं० नारायणचन्दजी महाराज की मातेश्वरी राजाजी ने और नारायणदासजी महाराज के शिष्य मुलतानमलजी की मातेश्वरी नेनूजी ने दीक्षा ग्रहण को थी । महासती राजाजी का स्वर्गवास वि० सं० १९७८ वैशाख सुदी पूनम को जोधपुर में हुआ था ।
महासती राजाजी की एक शिष्या रूपजी हुई थीं जिन्हें थोकड़े साहित्य का अच्छा अभ्यास था । महासती आनन्दकुंवरजी की एक शिष्या महासती परतापाजी हुईं जिनका वि० सं० १९८३ मृगशिर वदी ११ को स्वर्गवास हुआ था । महासती फूलकुंवरजी भी महासती आनन्दकुंवरजी की शिष्या थीं और उनकी सुशिष्या महासती झमकूजी थीं जिन्होंने अपनी पुत्री महासती कस्तूरीजी के साथ दीक्षा ग्रहण की थी। दोनों का जोधपुर में स्वर्गवास हुआ । महासती कस्तूरीजी की एक शिष्या गवराजी थीं, वे बहुत ही तपस्विनी थीं । उन्होंने अपने जीवन में पन्द्रह मासखमण किये थे, और भी अनेक छोटी-मोटी तपस्याएँ की थीं। उनका स्वर्गवास भी जोधपुर में हुआ ।
महासती आनन्दकुवरजी की बभूताजी, पन्नाजी, धापूजी, और किसनाजी अनेक शिष्याएँ थीं । महासती किसनाजी की हरकूजी शिष्या हुईं। उनकी समदाजी शिष्या हुई और उनकी शिष्या पानाजी हैं। आपका जन्म जालोर में हुआ, पाणिग्रहण भी जालोर में हुआ। गढ़सिवाना में दीक्षा ग्रहण की और वर्तमान में कारणवशात् जालोर में विराजित हैं ।
इस प्रकार महासती आनन्दकुंवरजी की परम्परा में वर्तमान में केवल एक साध्वीजी विद्यमान हैं ।
महासती फत्तूजी की शिष्या - परिवारों में महासती पन्नाजी हुईं। उनकी शिष्या जसाजी हुईं। उनकी शिष्या सोनाजी हुईं । उनकी भी शिष्याएँ हुईं, किन्तु उनके नाम स्मरण में नहीं हैं ।
महासती जसाजी की नैनूजी एक प्रतिभासम्पन्न शिष्या थी । उनकी अनेक शिष्याएं हुईं। महासती वीराजी, हीराजी, कंकूंजी, आदि अनेक तेजस्वी साध्वियाँ हुईं। महासती कंकूजी की महासती हरकूजी, रामूजी आदि शिष्याएँ । हुईं । महासती हरकूजी की महासती उमरावक वरजी, बक्सूजी ( प्रेमकुंवरजी) विमलवतीजी आदि अनेक शिष्याएँ हुईं । महासती उमरावकुंवरजी की शकुनकुंवरजी उनकी शिष्या सत्यप्रभा और उनकी शिष्या चन्द्रप्रभाजी आदि हैं । और महासती विमलवतीजी की दो शिष्याएँ महासती मदनकुंवरजी और महासती ज्ञानप्रभाजी है।
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