Book Title: Chintan ke Vividh Aayam
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

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Page 174
________________ राजस्थान के प्राकृत श्वेताम्बर साहित्यकार | ६३ की ही जन्म-स्थली गुजरात है, तो साहित्य-स्थली राजस्थान । कितने ही साहित्यिकों के सम्बन्ध में इतिहास वेत्ता संदिग्ध हैं, कि वे कहाँ के हैं, और कितनी ही कृतियों के सम्बन्ध में भी प्रशस्तियों के अभाव में निर्णय नहीं हो सका कि वे कहाँ पर बनाई गई हैं । प्रस्तुत निबन्ध में मैं उन साहित्यकारों का परिचय दूंगा जिनको जन्म-स्थली अन्य होने पर भी अपने ग्रन्थ का प्रणयन जिन्होंने राजस्थान में किया है। श्रमण-संस्कृति के श्रमणों की यह एक अपूर्व विशेषता रही है कि अध्यात्म की गहन साधना करते हुए भी उन्होंने प्रान्तवाद भाषावाद, और सम्प्रदायवाद को विस्मृत कर विस्तृत साहित्य की साधना की है। उन्होंने स्वयं एकचित्त होकर हजारों ग्रन्थ लिखे हैं, साथ ही दूसरों को भी लिखने के लिए उत्प्रेरित किया है। कितने ही ग्रन्थों के अन्त में ऐसी प्रशस्तियां उपलब्ध होती हैं, जिनमें अध्ययन-अध्यापन की लिखने लिखाने की प्रबल प्रेरणा प्रदान की गई है । जैसे "जो पढ़इ पढ़ावई एक चित्तु, सइ लिहइ लिहावइ जो णिरत्तु । आयरण्णं भण्णइं सो पसत्थु, परिभावइ अहिणिसु एउ सत्थु ॥ आचार्य हरिभद्र हरिभद्रसूरि राजस्थान के एक ज्योतिर्धर नक्षत्र थे। उनकी प्रबल प्रतिभा से भारतीय साहित्य जगमगा रहा है, उनके जीवन के सम्बन्ध में सर्वप्रथम उल्लेख कहावली में प्राप्त होता है । इतिहासवेत्ता उसे विक्रम की १२ वीं शती के आस-पास की रचना मानते हैं । उसमें हरिभद्र की जन्मस्थली के सम्बन्ध में "पिवंगई बंभपुणी" ऐसा वाक्य मिलता है । जबकि अन्य अनेक स्थलों पर चित्तौड़-चित्रकूट का स्पष्ट उल्लेख है । पंडितप्रवर सुखलाल जी का अभिमत है कि 'बंभपुणी' ब्रह्मचित्तौड़ का ही एक विभाग रहा होगा, अथवा चित्तौड़ के सन्निकट का कोई कस्बाहोगा । उनकी माता का नाम गंगा और पिता का नाम शंकरभट्ट था। सुमति 1 श्रीचन्द्रकृत रत्नकाण्ड 2 पाटण संघवी के-नैन भण्डार में वि० सं० १४६७ की हस्तलिखित ताड़ पत्रीय पोथी खण्ड २, पत्र-३०० ३ (क) उपदेशपद मुनि श्रीचन्द्रसूरि की टीका वि० सं० ११७४ (ख) गणधर सार्धशतक श्री सुमतिगणिकृत वृत्ति (ग) प्रभावक चरित्र १ शृग वि० सं० १३३४. (घ) राजशेखर कृत प्रबन्ध कोष वि० सं० १४०५ . समदर्शी आचार्य हरिभद्र पृ० ६ । 'संकरो नाम भट्टो तस्स गंगा भट्टिणी' 'तीसे हरिभदो नाम पंडिओ पुत्तो।' -कहावली, पत्र ३०० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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