Book Title: Chintan ke Vividh Aayam
Author(s): Devendramuni
Publisher: Tarak Guru Jain Granthalay

View full book text
Previous | Next

Page 155
________________ ४४ | चिन्तन के विविध आयाम [खण्ड २] गेलडा परिवार में हुआ । आपने दीक्षा ग्रहण कर आगम शास्त्र का अच्छा अभ्यास किया । आपकी एक शिष्या हुईं जिनका नाम महासती गुलाबकुंवरजी था । आपका जन्म 'गुलं डिया' परिवार में हुआ था और पाणिग्रहण 'वया' परिवार में हुआ था । आपको आगम व स्तोक साहित्य का सम्यक् परिज्ञान था। उदयपुर में ही संथारा सहित स्वर्गस्थ हुईं। महासती हुकुमकुंवरजी की चौथी शिष्या सज्जनकुंवरजी थीं। आपने उदयपुर के बाफना परिवार में जन्म लिया और दुगड़ों के वहाँ पर ससुराल था । आपकी एक शिष्या हुई निनका नाम मोहनकुंवरजी था जिनको जन्मस्थली अलवर थी और ससुराल खण्डवा में था । वर्षों तक संयम साधना कर उदयपुर में आपका स्वर्गवास हुआ। ___ महासती हुकुमकुवरजी की पांचवी शिष्या छोटे राजकुंवरजी थीं। आप उदयपुर के माहेश्वरी वंश की थीं। ___महासती हुकुमकुंवरजी की एक शिष्या देवकुंवरजी थीं जो उदयपुर के सन्निकट कर्णपुर ग्राम की निवासिनी थीं और पोरवाड वंश की थीं और सातवीं शिष्या महासती गेंदकुंवरजी थीं । आपका जन्म उदयपुर के सन्निकट भुआना के पगारिया कुल में हुआ । चन्देसरा गांव के बोकड़िया परिवार में आपकी ससुराल थी । आपको सैकड़ों थोकड़े कण्ठस्थ थे। आप से वापरायण थीं। सं० २०१० में ब्यावर में आपका स्वर्गवास हुआ। (५) महासती मदनकुँवरजी--आपकी जन्मस्थली उदयपुर थी। आपकी प्रतिभा गजब की थी । आपने महासतीजी के पास दीक्षा ग्रहण की। आपको आगम साहित्य का गम्भीर अध्ययन था और थोकड़ा साहित्य पर भी आपका पूर्ण अधिकार था। एक बार आचार्य श्रीमुन्नालालजी महाराज जो आगम साहित्य के मर्मज्ञ विद्वान थे, उन्होंने उदयपुर के जाहिर प्रवचन सभा में महासती मदनकुवरजी को उन्नीस प्रश्न किये थे । वे प्रश्न आगम ज्ञान के साथ ही प्रतिभा से सम्बन्धित थे। उन्होंने पूछा-बताइये महासतीजी; सिद्ध भगवान कितना विहार करते हैं ? उत्तर में महा. सतीती ने कहा-सिद्ध भगवान सात राजु का विहार करते हैं, क्योंकि सिद्ध जो बनते हैं वे यहाँ पर बनते हैं, यहीं पर अष्ट कर्म नष्ट करते हैं और फिर कर्म नष्ट होने से वे ऊर्ध्वलोक के अग्रभाग पर अवस्थित होते हैं । क्योंकि वहाँ से आगे आकाश द्रव्य है, पर धर्मास्तिकाय नहीं । महाराजश्री ने दूसरा प्रश्न किया-साधु कितना विहार करते हैं ? उत्तर में महासती जी ने कहा-आचार्य प्रवर, साधु चौदह राजु का विहार करते हैं । केवली भगवान जिनका आयुकर्म कम होता है और वेदनीय, नाम, गोत्र कर्म अधिक होता है, तब केवली समुद्धात होती है । उस समय उनके आत्मप्रदेश सम्पूर्ण लोक में प्रस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220