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ईश्वर : एक चिन्तन | ४५
ट्यूटानिया में देवों की एक लम्बी सूची मिलती है। यहाँ पर ईश्वर वाचक गोथिक 'ग्रुप', प्राचीन उच्च जर्मन 'गॉट', प्राचीन सैक्स 'गाड', जर्मन 'गाजे' आदि विविध शब्द थे। भाषाशास्त्रियों का मानना है कि ये शब्द मूर्ति या प्रतिमा के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं । ट्यूटानियों का यह दृढ़ विश्वास था कि सर्वोत्तम ईश्वरीय अंश मूर्ति में रहता है । यह स्पष्ट है कि ट्यूटानिकों का बहुदेववाद के साथ उच्च ईश्वरीय सत्ता में भी विश्वास था।
ईरान में ईश्वर-कल्पना प्राचीन ईरान में ईश्वर सम्बन्धी कोई भी कल्पना उपलब्ध नहीं होती । ईसा पूर्व पाँचवीं सदी तक ईरानी लोग उच्च पर्वतों पर चढ़कर “जिउस" नाम के ग्रहगोलों की उपासना करते थे, बलि चढ़ाते थे । प्रकृति की उपासना करना ही उनका मुख्य धर्म था । आकाश की पूजा में इनका पूर्ण विश्वास था । “स्फिगेल" के मन्तव्यानुसार इनके आकाश देवता "त्वाश" थे। उसके बाद आधुनिक फारसी में वह “सिपिहिर" हो गया । ईरानी सूर्य और चन्द्र की पूजा भी करते थे। 'अवेस्ता' में वही 'बार' और 'माह' बताया गया है । इतिहासकार हिरोडोटेस का मन्तव्य है कि जिउस की पत्नी पृथ्वी थी, जिसको "अरमैती" कहा जाता था। ईरानी लोग अग्नि को “आतर" (आतिश) और 'अपाम नपात' (पानी का पुत्र) कह कर उसकी उपासना करते थे। ये अपने देवता को 'आहुर' या 'दैव' कहते थे । 'हाओम' (सोम रस) इनकी एक महत्त्वपूर्ण देवी थी। 'फवशी' (पितृपूजा) की आराधना भी प्रचलित थी । अहुरों में "आहुर मज्दा" (सर्वश्रेष्ठ बुद्धि वाला देव) की उपासना ईरान में ईसा पूर्व दो हजार वर्षों से होती थी। इस तरह ईरान में विविध देव-देवियों की उपासना प्रचलित थी, उसमें आहुर मज्दा को उन्होंने सर्वश्रेष्ठ देव माना, वह ईश्वर है, ऐसा उनका अभिमत था।
___ जरथुष्ट्र ईरान के धर्मोद्धारक थे। वे क्रान्तिकारी थे। जन मानस में ईश्वर सम्बन्धी जो अव्यवस्थित एवं अस्पष्ट धारणाएँ थीं, उनको उन्होंने व्यवस्थित रूप देने का प्रयास किया । 'अवेस्ता' में उन्होंने ईश्वर के स्वरूप का प्रतिपादन करते हुए बताया कि 'आहुर मज्दा' स्वर्ग एवं आकाश तथा अग्निशिखाओं को धारण करता है । वह मूलतः मैन्यु (आत्म-तत्त्व) है, स्पेंता (दयालु और पवित्र) है । वह सृष्टिकर्ता है, प्रकाश व अन्धेरे का निर्माता है । वह सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वस्थ, सर्वदर्शी, स्वामी है, वह अमर है, अपरिवर्तनशील है।
ईरानियों के विश्वास के अनुसार आहुर मज्दा की तरह एक और शक्ति है'आंग्रा मैन्यू' जो पापात्मा है। वह सन्तों को दुःख देती है । यह आहुर मज्दा से बिल्कुल उल्टी प्रकृति वाली तथा शैतानी शक्ति है । मज्दा के छः गुणों का भी वर्णन है(१) वोहुमना (सर्वोत्तम मन या आत्मा), (२) आशा वहिष्ट (पूर्णता और पुण्य का भण्डार), (३) रव्शन वैर्य (शान्ति वीर्य), (४) आरमंती (पवित्रता या भक्ति), (५)
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