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व्यवहार सूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन
भारतीय संस्कृति विश्व की महान् संस्कृति है । यह अतीतकाल से ही जन-जन के अन्त में पवित्र प्रेरणा का स्रोत बहाती रही है। यह संस्कृति श्रमण और ब्राह्मण इन दो धाराओं में विभक्त रही है । श्रमण और ब्राह्मण युग-युग से भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते रहे हैं । आत्मा, परमात्मा और विराट् विश्व के सम्बन्ध में वे गहराई से अनुशीलन- परिशीलन करते रहे हैं । भारतीय तत्त्वद्रष्टा ऋषिमहर्षि, श्रमण और मुनि तथा मूर्धन्य मनीषीगण ने अपने अनूठे तत्त्वज्ञान के द्वारा जो जन-जीवन को आध्यात्मिक, नैतिक व सांस्कृतिक आलोक प्रदान किया वह चिन्तन आज भी प्राचीन साहित्य के रूप में उपलब्ध है ।
भारतीय चिन्तन को हम श्रुत और श्रुति के रूप जानते हैं। श्रुति वेदों की प्राचीन संज्ञा है, वह ब्राह्मण संस्कृति से सम्बन्धित मूल वैदिक विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है और वही बाद में शैव और वैष्णव प्रभृति धर्म परम्पराओं का मूलाधार बनी । श्रुत श्रमण-संस्कृति का मूल स्रोत है । यद्यपि श्रुति और श्रुत दोनों का ही सम्बन्ध श्रवण में है, जो सुनने में आता है वह श्रुत है' और वही भाववाचक मात्र श्रवण श्रुति है । पर यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि सामान्य व्यक्तियों का har श्रुत और श्रुति नहीं है । पर जो विशिष्ट ज्ञाता आप्तपुरुष हैं, उन्हीं का कथन श्रुति और श्रुत के रूप में विश्रुत रहा है ।
ब्राह्मण परम्परा का मूल वैचारिक स्रोत वेद है । वैदिक परम्परावादी विज्ञों अभिमत है कि वेद ईश्वर की वाणी है । वेद किसी सामान्य व्यक्ति विशेष के द्वारा कहा हुआ नहीं, अपितु ईश्वर द्वारा उपदिष्ट विचारों का संकलन है । कितने ही विचारक यह भी मानते हैं कि वेद तत्त्वद्रष्टा ऋषियों की अनुभूत वाणी का संकलन व आकलन है । प्रारम्भ में वेद संख्या की दृष्टि से तीन थे । अतः वे वेदत्रयी के रूप में विश्रुत रहे । पश्चात् अथर्व को मिला देने से वेदों की संख्या चार हो गयी । भाषा की दृष्टि से यह साहित्य संस्कृत में है । वेदों की व्याख्या ब्राह्मण और आरण्यक
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(क) तत्त्वार्थ सूत्र राजवार्तिक ।
(ख) विशेषावश्यक भाष्य - मलधारीयावृत्ति ।
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