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८६ | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १
वह उस उपकरण को लेकर अपने स्थान पर आये और जिसका उपकरण हो उसे प्रदान करे, पर वह उपकरण यदि किसी सन्त का नहीं है तो उसका उपयोग न करे और निर्दोष स्थान पर परित्याग कर दे । इस उद्देशक में आहार के सम्बन्ध में चिन्तन करते हुए बताया है कि आठ ग्रास का आहार करने वाला अल्पाहारी, बारह ग्रास का आहार करने वाला अपार्धावमौदरिक, सोलह ग्रास का आहार करने वाला द्विभाग प्राप्त, चौबीस ग्रास का आहार करने वाला प्राप्तावमौदरिक, बत्तीस ग्रास का आहार करने वाला प्रमाणोपेताहारी और उससे एक ग्रास कम करने वाला . अवमौदरिक कहलाता है।
नौवें उद्देशक में बताया है कि शय्यातर आदि का आहार श्रमण-श्रमणियों के लिए ग्राह्य नहीं है। साथ ही, श्रमण की द्वादश प्रतिमाओं के सम्बन्ध में भी वर्णन है।
दशवें उद्देशक में यवमध्यचन्द्र प्रतिमा तथा वज्रमध्य चन्द्र प्रतिमा के स्वरूप पर विश्लेषण करते हुए कहा है-जो जौ के कण के सदृश मध्य में मोटी हो और दोनों ही ओर पतली हो वह यवमध्यचन्द्र प्रतिमा है, जो वज्र के समान मध्य में पतली हो और दोनों ओर मोटी होती है वह वज्रमध्यचन्द्र प्रतिमा है । यवमध्यचन्द्र प्रतिमा को जो श्रमण धारण करता है वह श्रमण एक महीने तक अपने तन की ममता को छोड़कर देव-मानव और तिर्यंच सम्बन्धी अनुकूल और प्रतिकूल परीषहों सहन करता है। उपसर्गों को सहन करते समय उसके अंतर्मानस में तनिक मात्र भी विषमता नहीं आती । वह शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को एक दत्ती आहार की ग्रहण करता है । इस प्रकार पूर्णमासी तक पन्द्रह दत्ती आहार की और पन्द्रह दत्ती पानी की ग्रहण करता है । कृष्णपक्ष में क्रमश: एक दत्ती कम करता जाता है और अमावस्या के दिन उपवास करता है । इसे यवमध्यचन्द्र' प्रतिमा कहते हैं।
वज्रमध्यचन्द्र प्रतिमा में कृष्णपक्ष की प्रतिपदा को पन्द्रह दत्ती आहार की और पन्द्रह दत्ती पानी की ग्रहण की जाती हैं और क्रमशः एक-एक दिन एक-एक दत्ती कम कर अमावस्या को एक दत्ती आहार और एक दत्ती पानी ग्रहण करता है। और शुक्लपक्ष में एक-एक दत्ती बढ़ाकर पूर्णमासी को उपवास करता है ।
व्यवहार के आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीतव्यवहार-- ये पांच प्रकार हैं । स्थविर के जातिस्थविर, श्रुतस्थविर और प्रव्रज्यास्थविर ये तीन प्रकार हैं। शैक्ष भूमियाँ तीन हैं - सप्तरानिन्दिनी, चातुर्मासिकी और षाण्मासिकी। आठ वर्ष से कम उम्र वाले को दीक्षा देना नहीं कल्पता।' जिनकी उम्र बहुत छोटी है वे आचा
1 विनयपिटक में २० वर्ष से कम उम्रवाले व्यक्ति को दीक्षा नहीं देना, विनय
पिटक-भिक्खुपतिमोक्खापाचित्तय, ६५. के साथ तुलना करने से उस युग की भिन्न विचारधाराओं का भी पता लगता है ।
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