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३८ | चिन्तन के विविध आयाम : खण्ड १
शिटो धर्म में ईश्वर
शिटो धर्म का प्रादुर्भाव जापान में हुआ था । इस धर्म में एक ईश्वर के स्थान पर अनेक देवी-देवताओं की मान्यता प्रचलित हुई । यों कह सकते हैं कि उन्होंने देवीदेवताओं को ही ईश्वर मानकर उपासना की । प्राकृतिक शक्तियों को देखकर उनके अन्तर्मानस में उन शक्तियों के प्रति एक आकर्षण पैदा हुआ और उन्होंने उन शक्तियों को देवी के रूप में संस्थापित किया। उनकी यह दृढ़ मान्यता थी कि मानव के भाग्यविधाता के रूप में ये देवी-शक्तियाँ हैं । जो कुछ भी होता है वह इन्हीं दैवी-शक्तियों के कारण होता है। ये दैवी-शक्तियाँ ही प्रकाश, स्वास्थ्य, धान्य, शत्रुओं से संरक्षण, सम्पत्ति की उपलब्धि व अभिवृद्धि करती हैं। उन देव-देवियों की परिगणना में सुसा नो वो (पर्जन्य देवी), इनारी (धान्य देवता), सूर्य देवी, पृथ्वी देवता, पर्वत देवता, समुद्र देवता, नदी देवता, वायु देवता, अन्न की देवी, वृक्ष देवता आदि हैं । वहाँ पर देवता के वाहन के रूप में बाघ, सिंह, भेड़िया, आदि पशुओं की भी अर्चना होती है ।
जब जापान में बौद्ध धर्म का प्रचार हुआ तो शिटो धर्म पर भी उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। वर्तमान युग में शिंटो धर्म पर बौद्ध धर्म का अत्यधिक प्रभाव है। ईश्वर की कल्पना जिस रूप में अन्य धर्मों में की गई है वैसी ईश्वर की कल्पना शिण्टो धर्म में नहीं है।
[द्वितीय विभाग] भौगोलिक दृष्टि से ईश्वर-विचार
पूर्व पृष्ठों में हमने विभिन्न धर्मों और दर्शनों की दृष्टि से ईश्वर के स्वरूप के सम्बन्ध में विचार किया। अब भौगोलिक दृष्टि से भी उसके स्वरूप के सम्बन्ध में विचार कर लेना उचित होगा। क्योंकि एक ही प्रदेश में अनेक धर्म और दर्शन एक साथ रहते हैं। इसके अतिरिक्त जन-मानस की धारणाएँ दर्शनों और धर्मों से पृथक भी होती हैं। उन मान्यताओं पर भौगोलिक वातावरण का असर होता है। हम सर्वप्रथम प्रागैतिहासिक काल में विश्व के सभी अंचलों में फैले हुए आदिवासियों की ईश्वर-विषयक कल्पना के सम्बन्ध में उल्लेख करके पौर्वात्य और पाश्चात्य देशों में प्रचलित ईश्वर सम्बन्धी धारणाओं को प्रस्तुत करेंगे। आदिवासियों में ईश्वर
___ आदिवासियों में मानव को 'निम्न' और ईश्वर को 'उच्च' मानने की परम्परा बहुत ही पुरानी है। उनका यह विश्वास था कि एक सर्वशक्ति रूप पिता अनन्त आकाश में है । वह सर्वशक्तिमान् भूत-प्रेत नहीं है, किन्तु एक विशिण्ट शक्ति है जो कभी-कभी पृथ्वी पर भी आती है और लम्बे समय तक पृथ्वी पर रहती है उसके बाद पुनः अनन्त आकाश में अत्युच्च स्थान पर बैठ कर वह मानवों के प्रत्येक क्रिया-कलाप का निरीक्षण करती रहती है।
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