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ईश्वर : एक चिन्तन| ३५
मनुष्य का ईश्वर में विश्वास और निष्ठा के रहने का आधार ईश्वर का पुण्यवान् मनुष्य के प्रति प्रेम है । ईश्वर का प्रेम अनुग्रह बनकर व्यक्त होता है । मनुष्य की दृष्टि से ईश्वर के न्याय से भी अधिक उसका प्रेम अनन्त, असीम है । इसीलिए गुरुओं ने ईश्वर-प्रेम की माता के प्रेम से तुलना की है। ईश्वर का क्रोध क्षणिक है, और प्रेम सदा रहता है। सिक्ख धर्म में "शिव" प्रकाश का प्रतीक है और "शक्ति या माया" अन्धकार का । गुरु नानक की मान्यता थी कि शरीर ईश्वर का मन्दिर है और मनुष्य ईश्वर की सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ हीरा है।
यहूदी धर्म में ईश्वर विश्व के प्रमुख धर्मों में यहूदी धर्म भी एक है। यहूदियों का सारा जीवन ईश्वरापित है । "याहवेह [जेहोवा]" इनके प्रमुख आराध्य देव हैं और इसी मुख्य देव ने अन्य देवों का निर्माण किया है । इनका यह अभिमत है कि ईश्वर एक ही है,सारी सृष्टि उसके द्वारा निर्मित है।
इनकी दृष्टि से संसार एक कार्य-क्षेत्र है । जब कभी भी धर्म के प्रति जनमानस में ग्लानि समुत्पन्न होती है, तब ईश्वर अपना अद्भुत चमत्कार दिखाता है । प्रस्तुत मान्यता की तुलना 'श्रीमद्भगवद्गीता' के "यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत !........" से की जा सकती है। पर अन्तर यही है कि गीता की दृष्टि से ईश्वर अवतार ग्रहण करता है और यहूदियों की दृष्टि से वह अवतार ग्रहण नहीं करता अपितु अद्भुत चमत्कारों द्वारा जन-मानस को सद्बोध का पाठ पढ़ाता है । यहूदी धर्म में मानव को ईश्वर का प्रतिनिधि माना है जबकि मिस्र और मेसोपोटेमिया के निवासी प्रकृति को ही ईश्वर मानते थे। पर यहूदियों ने यह क्रान्ति की और उन्होंने मनुष्य की महत्ता स्वीकार की। उन्होंने कहा- ईश्वर मनुष्यों के द्वारा आदर्शों को धरती पर लाता है । यहूदी धर्म में मसीहों का अत्यधिक प्राधान्य रहा है। मसीहा वह है जो ईश्वर के पक्ष में बोलता है। मसीहा को 'प्रॉफेट' कहते हैं, जो एक प्रकार से मानव और ईश्वर के बीच की कड़ी है । यहूदियों का ईश्वर जहाँ सच्चे भक्तों पर तुष्ट होता है और उन्हें अपार आनन्द प्रदान करता है तो दुष्ट एवं आज्ञा का उल्लंघन करने वालों पर रुष्ट होकर उन्हें दण्ड भी देता है । इस प्रकार के अनेक प्रसंग यहूदी साहित्य में प्राप्त होते हैं।
पारसी धर्म में ईश्वर पारसी धर्म के संस्थापक जरथुस्त थे । इसमें ईश्वर के अर्थ में “आहूर मजदा" शब्द व्यवहृत हुआ है। जरथुस्त ने आहूर मजदा के सम्बन्ध में बताया कि वह विश्व में सर्वोच्च है । वह सबसे अधिक प्रकाशमान, सबसे अधिक ऊँचा, सबसे अधिक पुरातन, सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम, कल्याणकारी, अपरिवर्तनीय, अचल, अखण्ड, आनन्द का स्वामी है । वह उच्च दिव्यलोक में राजसी सिंहासन पर आसीन है। उसका वस्त्र आकाश है । वह मानव का पिता, बन्धु एवं मित्र है। वह स्रष्टा है, उसी ने अनन्त
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