Book Title: Charitrya Suvas Author(s): Babulal Siddhsen Jain Publisher: Shrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba View full book textPage 9
________________ VII प्रयोजन तो एक ही है कि हम इन प्रसंगोको केवल पढ़कर ही संतोष न मानें अपितु अपने पूर्वजोंके गौरवपूर्ण उत्तराधिकारकी ओर अपना लक्ष जाय और जैसा महान पुरुषार्थ करके उन्होंने अपना जीवन उदात्त एवं दीपस्तम्भके समान बनाया वैसे ही हम भी उन उत्तम गुणोंका जीवनमें प्रयत्नपूर्वक आचरण करें और जीवनको उन्नत बनायें। . आत्मीयता, सहयोगकी भावना, सतत परिश्रम, गहरी सूझ, भाषासौष्ठव, विशाल वाचन-लेखनका अनुभव आदि अनेक गुणोंसे विभूषित हमारे दोनों सह-सम्पादक - आत्मार्थी शुभ गुणसम्पन्न धर्मवत्सल भाई श्री जयंतीभाई और सरलस्वभावी सहृदयी, साहित्यप्रेमी प्रो. अनिल सोने नीने इस पुस्तकको सुन्दर रसमय, बोधक और सत्त्वशील बनाने में जो योग प्रदान किया है वह सचमुच अमूल्य है। इसीके फलस्वरूप यह पुस्तक अपने वर्तमान रूपमें आपके समक्ष समयसे रखी जा सकी है ऐसा बताने में मुझे सात्त्विक आनन्दका अनुभव होता है। अन्तमें, इसके पठनसे राष्ट्र, समाज और व्यक्तिको सामान्य सुख-दशा उत्पन्न हो और साथ ही सत्य ज्ञान एवं सत्य आनन्दके मार्गपर चलनेके लिए सच्चा अध्यात्मदृष्टिकोण अपनानेकी तत्परता और पात्रता प्राप्त हो ऐसी भावनापूर्वक विराम लेता हूँ। - आत्मानन्द "जो मनुष्य सत्पुरुषके चरित्र-रहस्यको पाता है, वह पुरुष परमात्मा बनता है।" - श्रीमद् राजचन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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